गांव की मिट्टी से शोले तक — धर्मेंद्र का सुनहरा सफर
गांव की मिट्टी से उठकर हिंदी सिनेमा के सबसे चमकते सितारों में शामिल होने तक, धर्मेंद्र का सफर प्रेरणा से भरा है। ‘शोले’, ‘चुपके-चुपके’ और ‘धरम वीर’ जैसी फिल्मों से उन्होंने करोड़ों दिलों में जगह बनाई। आइए जानते हैं धर्मेंद्र के करियर, परिवार, और उनकी अदाकारी के सुनहरे दौर की कहानी।

धरम पाजी: बॉलीवुड के ही-मैन की जिंदगी का अनकहा किस्सा
मुंबई। हिंदी सिनेमा की दुनिया में कुछ चेहरे ऐसे हैं, जो सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि दर्शकों के दिलों में भी बसे हैं। उनमें से एक नाम है — धर्मेंद्र। आम इंसान की सादगी और परदे पर वीरू जैसी शख़्सियत — यही दो रूप उन्हें “ही-मैन ऑफ बॉलीवुड” बनाते हैं।

नसराली गांव से मुंबई तक का सफर
8 दिसंबर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के नसराली गांव में जन्मे धरमसिंह देओल बचपन से ही फिल्मों के शौकीन थे। पिता एक स्कूल टीचर थे और परिवार मध्यमवर्गीय था, लेकिन धर्मेंद्र के सपनों की उड़ान सीमित नहीं थी। 1958 में उन्होंने फिल्मफेयर न्यू टैलेंट हंट जीता और मुंबई का टिकट मिला — यहीं से शुरू हुई हिंदी सिनेमा के सबसे करिश्माई नायक की यात्रा।
‘फूल और पत्थर’ से चमकी किस्मत
1960 में “दिल भी तेरा हम भी तेरे” से डेब्यू करने वाले धर्मेंद्र ने धीरे-धीरे दर्शकों के दिलों में जगह बनाई।
लेकिन उनकी असली पहचान बनी 1966 की ब्लॉकबस्टर “फूल और पत्थर” से। रोमांटिक हीरो से लेकर एक्शन स्टार तक, धर्मेंद्र हर किरदार में रच-बस गए।
फिल्में जैसे सत्यकाम, राजा जानी, प्रतिज्ञा, चुपके चुपके, और सबसे यादगार शोले ने उन्हें अमर बना दिया।

‘शोले’ का वीरू — हमेशा यादगार
“बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना…”
यह डायलॉग सिर्फ फिल्मी नहीं, एक युग की पहचान बन गया।
शोले (1975) में वीरू का किरदार धर्मेंद्र के करियर का सबसे आइकॉनिक रोल साबित हुआ।
उनकी जोड़ी हेमा मालिनी के साथ पर्दे पर छा गई, और फिर असल जिंदगी में भी दोनों एक-दूसरे के जीवन साथी बन गए।

फिल्मों के परे — परिवार और रिश्तों का धर्म
धर्मेंद्र का निजी जीवन हमेशा सुर्खियों में रहा। उनका पहला विवाह प्रकाश कौर से हुआ, जिनसे उनके दो बेटे — सनी देओल और बॉबी देओल हैं। बाद में उन्होंने अभिनेत्री हेमा मालिनी से विवाह किया, जिनसे दो बेटियां — ईशा देओल और अहाना देओल हैं।
परिवार आज भी फिल्मी दुनिया में सक्रिय है और “देओल खानदान” हिंदी सिनेमा की सबसे सम्मानित विरासतों में से एक है।

सम्मान और उपलब्धियां
धर्मेंद्र ने अपने छह दशक लंबे करियर में 250 से अधिक फिल्मों में काम किया। उन्हें 1997 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, और 2012 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण सम्मान मिला। उनकी लोकप्रियता आज भी कम नहीं हुई — चाहे वह सोशल मीडिया पर उनका देसी अंदाज़ हो या फार्महाउस से उनकी खेती-बाड़ी की तस्वीरें।
राजनीति में भी आजमाया हाथ
2004 में धर्मेंद्र ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट पर बीकानेर लोकसभा सीट से चुनाव जीता और संसद पहुंचे।
हालांकि बाद में उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली और अपने फार्महाउस में सादगीभरा जीवन जीना पसंद किया।
धरती से जुड़ा हीरो
फिल्मों की चकाचौंध में भी धर्मेंद्र का दिल हमेशा मिट्टी से जुड़ा रहा। वे कहते हैं — “मैंने हमेशा अपनी जड़ों से प्यार किया है।
खेतों की खुशबू और गांव की हवा आज भी मुझे सुकून देती है।”
एक विरासत, जो अमर रहेगी
धर्मेंद्र सिर्फ अभिनेता नहीं, एक युग हैं — मेहनत, सादगी और जज़्बे का प्रतीक। उनकी विरासत आज उनके बेटों सनी और बॉबी देओल, और बेटियों ईशा व अहाना देओल के ज़रिए आगे बढ़ रही है।
सिनेमा का यह ही-मैन आज भी दिलों का “धरम पाजी” है — वही मुस्कान, वही अपनापन और वही सच्चाई जो उन्हें लाखों दिलों का हीरो बनाती है।

धर्मेंद्र का जीवन इस बात का सबूत है कि सच्ची सफलता वही है जो मेहनत और सादगी दोनों में संतुलन रखे।
वे सिर्फ “बॉलीवुड के ही-मैन” नहीं, बल्कि “भारत के सबसे प्यारे इंसान” हैं।





