JABALPUR HIGH COURT : पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स बलात्कार नही, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
Madhyapradesh
जबलपुर /मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (Highcourt) ने कहा है कि पति-पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाएगा क्योंकि भारतीय कानून वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं मानता है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में पत्नी की सहमति महत्वहीन हो जाती है।
न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया मनीष साहू नाम के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दायर मामले को चुनौती दी थी। महिला का आरोप है कि उसके पति ने 6 जून और 7 जून 2019 को और उसके बाद भी कई बार उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। साहू ने दलील दी कि चूंकि वह और शिकायतकर्ता शादीशुदा थे, इसलिए उनके बीच अप्राकृतिक यौन संबंध भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध नहीं था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा की, किसी महिला के गुदा में लिंग डालना भी ‘बलात्कार’ की परिभाषा में शामिल किया गया है और पति द्वारा 15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ कोई भी संभोग या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है, तो इन परिस्थितियों में, अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति के अभाव का महत्व खत्म हो जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अनुसार, बलात्कार में किसी महिला के साथ बिना सहमति के संभोग से जुड़े सभी प्रकार के यौन हमले शामिल हैं। हालांकि, IPC की धारा 375 के अपवाद 2 के अनुसार, 15 वर्ष से अधिक उम्र के पति और पत्नी के बीच यौन संबंध “बलात्कार” नहीं है और इस प्रकार ऐसे कृत्यों को मुकदमा चलाने से रोकता है। न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने साहू के आवेदन को स्वीकार कर लिया और उनके खिलाफ मामला रद्द कर दिया।
क्या है पूरा मामला :
दरअसल, मनीष साहू नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी के द्वारा दर्ज कराई गई (FIR) की गई थी जिसमें IPC की धारा 377 के तहत पति पर अप्राकृतिक सेक्स करने का आरोप लगाया गया था। पत्नी ने FIR में खुलासा किया की शादी के बाद जब वह दूसरी बार मायके गई तो 6 जून 2019 एवं 7 जून 2019 की मध्य रात्रि को उसके पति/आवेदक ने उसके साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया। उसके बाद कई बार उसने उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। पत्नी द्वारा दर्ज की गई FIR को चुनौती देते हुए, आवेदक-पति ने उच्च न्यायालय का रुख किया था।