धर्म

SHARDIYA NAVRATRI 2025 : नवरात्रि के चौथे दिन मंद मुस्कान से ब्रह्मांड रचने वाली माँ कुष्मांडा की पूजा

Durga puja

नवरात्रि के चौथे दिन शक्ति के चतुर्थ स्वरूप माँ कुष्मांडा की आराधना पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ की जा रही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवी कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसलिए उन्हें सृष्टि की आदिशक्ति माना जाता है।

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अष्टभुजा स्वरूप वाली यह देवी सिंह पर सवार हैं और इनके हाथों में कमंडल, चक्र, गदा, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश और जपमाला होती है। मान्यता है कि माँ कुष्मांडा सूर्य मंडल के भीतर निवास करती हैं और वहीं से संपूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करती हैं।

माँ कुष्मांडा की कथा

बहुत प्राचीन समय की बात है, जब संपूर्ण सृष्टि अंधकारमय थी। ना कहीं कोई प्रकाश था, ना ही जीवन। चारों ओर शून्यता ही शून्यता फैली थी। तब एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई — वही थीं माँ कुष्मांडा। माँ ने जब मंद मुस्कान (हल्की हँसी) की, तभी चारों ओर प्रकाश फैल गया और ब्रह्मांड की रचना हुई। इसीलिए इन्हें “कु-उष्मा-अंड” कहकर बुलाया गया:

“कु” = थोड़ा

“उष्मा” = ऊर्जा

“अंड” = ब्रह्मांड

यानि जिनके थोड़ा सा हँसने से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई — वही हैं माँ कुष्मांडा।

माँ का स्वरूप

माँ कुष्मांडा अष्टभुजा देवी हैं यानी उनके आठ भुजाएँ हैं।
उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला होती है।
माँ का वाहन सिंह है, जो उनके शौर्य और पराक्रम का प्रतीक है।

धार्मिक मान्यता

माँ कुष्मांडा सृष्टि की आदि शक्ति हैं। वे ही सूर्य मंडल के भीतर निवास करती हैं और वहीं से संपूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा देती हैं।देवताओं ने जब उनसे सृष्टि की रक्षा के लिए प्रार्थना की, तब माँ ने अपनी शक्ति से त्रिदेवों को उत्पन्न किया — ब्रह्मा, विष्णु और महेश। फिर ब्रह्मा जी ने सृष्टि का विस्तार किया।

माँ कुष्मांडा की पूजा का फल

श्रद्धापूर्वक पूजन करने से स्वास्थ्य, दीर्घायु, और समृद्धि प्राप्त होती है। मानसिक तनाव और भय दूर होते हैं। साधक को दिव्य तेज, ओज और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

पूजा मंत्र

> ॐ देवी कुष्माण्डायै नमः।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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