
Independence Day 2025 : 15 अगस्त 1947 वह तारीख है जिसे सुनते ही हर भारतीय का दिल गर्व से भर जाता है। यह सिर्फ कैलेंडर का एक दिन नहीं, बल्कि सदियों की लड़ाई, त्याग और बलिदान का फल था। आधी रात को जब घड़ी ने बारह बजाए, तब एक नए भारत ने जन्म लिया। पूरा देश खुशी में डूबा था, लेकिन इसके साथ ही एक दर्द भी था बंटवारे का घाव। उस दिन का माहौल सिर्फ जश्न का नहीं, बल्कि भावनाओं, उम्मीदों और अनिश्चितताओं का भी था। जानिए उस ऐतिहासिक सुबह को दिल्ली, गांव-कस्बे, अखबार, नेता और आम लोग कैसे जी रहे थे।
14 अगस्त, 1947 को भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, जिसे भारत का स्वतंत्रता दिवस कहा जाता है। यह दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब देश ने लगभग 200 वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की। 15 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले पर भारतीय ध्वज फहराया, और भारत स्वतंत्र राष्ट्र बना।
भारत की आजादी की कहानी संघर्ष, बलिदान और दृढ़ संकल्प की कहानी है. 19वीं शताब्दी के मध्य से, भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया. महात्मा गांधी के नेतृत्व में, एक अहिंसक आंदोलन ने देशव्यापी समर्थन प्राप्त किया और ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1947 में, ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने का फैसला किया और भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की घोषणा की।
14 और 15 अगस्त 1947 की दरमियानी रात संविधान सभा की पांचवी बैठक में भारत की आज़ादी का ऐलान किया गया। बैठक की शुरुआत रात 11 बजे संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद की अध्य़क्षता में स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी के वंदे मातरम गीत को गाने के साथ हुई। फिर राजेन्द्र प्रसाद का अध्यक्षीय भाषण हुआ। इसके बाद डॉ. एस. राधाकृष्णन ने संविधान सभा के सामने आज़ादी का प्रस्ताव रखा। फिर डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने दो प्रस्ताव रखे – कि वॉयसराय को इसकी सूचना दी जाए कि भारत की संविधान सभा ने भारत देश की सत्ता संभाल ली है। साथ ही 15 अगस्त 1947 से लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का गवर्नर-जनरल होने की सिफ़ारिश करती है। इसकी सूचना संविधान सभा के अध्यक्ष और जवाहर लाल नेहरू माउंटबेटन को देंगे। संविधान सभा की ऐतिहासिक बैठक शुरू हुई, तभी पंडित नेहरू ने डॉ राधाकृष्णन से इस मौके पर भाषण देने की दरख्वास्त की। राधाकृष्णन मंच पर चढ़े और बिना किसी तैयारी के भाषण शुरु कर दिया। राधाकृष्णन ने अपने भाषण में संस्कृत के एक श्लोक का इस्तेमाल किया। यह श्लोक था-
सर्वभूता दिशा मात्मानम,सर्वभूतानी कत्यानी।
समपश्चम आत्म्यानीवै स्वराज्यम अभिगछति।।
यानी स्वराज एक ऐसे सहनशील प्रकृति का विकास है जो हर इंसान में ईश्वर का रूप देखता है। असहनशीलता हमारे विकास की सबसे बड़ी शत्रु है। एक दूसरे के विचारों के प्रति सहनशीलता एकमात्र स्वीकार्य रास्ता है।
आजादी की पहली सुबह से पहले वाली रात दिल्ली के लिए बहुत खास थी। ब्रिटिश राज का आखिरी दिन खत्म हो चुका था और नया भारत शुरू हो रहा था। राजधानी में एक अजीब-सी खामोशी थी, जैसे लोग सांस रोककर किसी बड़े पल का इंतजार कर रहे हों। रात 12 बजे, संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण “Tryst with Destiny” दिया, जिसमें उन्होंने कहा- जब पूरी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की ओर जागेगा। यह भाषण रेडियो पर लाइव सुनाया गया और लाखों लोग अपने-अपने घरों में रेडियो से कान लगाकर इसे सुन रहे थे।
आजादी की पहली सुबह का ये जश्न आधी रात से ही जारी था। 14-15 अगस्त की आधी रात के जश्न ने लोगों को उत्साहित कर दिया था। उस रात को ‘जन गण मन’ और ‘वंदेमातरम’ के गीतों की मधुर ध्वनि कैसी स्वर्गीय सी जान पड़ती थी। ये गीत पहले भी अनेकों बार सुने थे, किन्तु उस रात तो एक-एक शब्द मानों पुकार-पुकार कर अपना अर्थ भी श्रोताओं के कानों में कह रहा था. उस रात वास्तव में शस्यश्यामला, बहुबल घारिणी, रिपुदल वारिणी आदि विशेषणों के ठीक अर्थ समझ में आए। जब ‘जन गण मन’ आरम्भ हुआ तो इसकी ललित लय में हजारों सिर हिल उठे. किन्तु जैसे ही राष्ट्र गान में पंजाब और सिंध का उल्लेख हुआ एकत्रित भीड़ में सैंकड़ों आदमियों ने सिर उठाकर एक-दूसरे को देखा. वहां उपस्थित जनों को सहसा विभाजन की टीस याद आ गई जो दूसरी ओर पाकिस्तान नाम के मुल्क के रूप में मूर्त रूप ले चुकी थी और सरहदों पर हिंसा को जन्म दे चुकी थी।
14 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन सैन्य छावनियों, सरकारी कार्यालयों, निजी मकानों आदि पर फहराते यूनियन जैक को उतारा जाना शुरू हो चुका था। 14 अगस्त को जब सूर्य डूबा तो देशभर में यूनियन जैक ने ध्वज-दण्ड का त्याग कर दिया, ताकि वह चुपके से भारतीय इतिहास के भूत-काल की एक चीज बनकर रह जाए. समारोह के लिए आधी रात को धारा सभा भवन पूरी तरह तैयार था. जिस कक्ष में भारत के वायसरायों की भव्य ऑयल-पेंटिंग्स लगी रहा करती थीं, वहीं अब अनेक तिरंगे झंडे शान से लहरा रहे थे।
अगले दिन यानी 15 अगस्त की सुबह 08 बजे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर यूनियन जैक की जगह भारत का तिरंगा झंडा फहराया। दिल्ली हजारों साल का पुराना शहर है। अपने इतिहास में उसने एक स्थान में इतना विशाल जनसमूह निश्चय ही कभी नहीं देखा होगा, जितना उस दिन लाल किले के आसपास आ जुटा था। स्थानीय पत्रों तथा सरकारी अनुमानों के अनुसार, वहां 10 लाख से कम आदमी नहीं थे। दिल्ली गेट से लेकर कश्मीरी गेट तक और जामा मस्जिद से लाल किले तक कहीं सड़क या भूमि दिखाई नहीं देती थी। सिवाय एक अपार जनसमुदाय के और कुछ नहीं था।
15 अगस्त की सुबह से ही देश के शहर-शहर, गांव-गांव में जश्न शुरू हो गया था. दिल्ली के बाशिंदे घरों से निकल पड़े. साइकिलों, कारों, बसों, रिक्शों, तांगों, बैलगाड़ियों, यहां तक हाथियों-घोड़ों पर भी सवार होकर लोग दिल्ली के केंद्र यानी इंडिया गेट की ओर चल पड़े. लोग नाच-गा रहे थे, एक-दूसरे को बधाइयां दे रहे थे और हर तरफ राष्ट्रगान की धुन सुनाई पड़ रही थी। चारों दिशाओं से लोग दिल्ली की ओर दौड़े चले आ रहे थे. तांगों के पीछे तांगे, बैलगाड़ियों के पीछे बैलगाड़ियां, कारें, ट्रकें, रेलगाड़ियां, बसें सब लोगों को दिल्ली ला रही थीं लोग छतों पर बैठकर आए, खिड़कियों पर लटककर आए, साइकिलों पर आए और पैदल भी, दूर देहात के ऐसे लोग भी आए जिन्हें गुमान तक नहीं था कि भारत देश पर अब तक अंग्रेजों का शासन था और अब नहीं है. लोग गधों पर चढ़े, घोड़ों पर चढ़े. मर्दों ने नई पगड़ियां पहनीं, औरतों ने नई साड़ियां. बच्चे मां-बाप के कंधों पर लटक गए. देहात से आए बहुत से लोग पूछ रहे थे कि यह धूम-धड़ाका काहे का है? तो लोग बढ़-बढ़ कर बता रहे थे- अरे, तुम्हे नहीं मालूम, अंग्रेज जा रहे हैं। आज नेहरू जी देश का झंडा फहराएंगे. हम आजाद हो गए।
गांव-देहात से आए लोग अपने बच्चों को आजादी का मतलब अपने-अपने हिसाब से समझा रहे थे कि अब अंग्रेज चले गए. अब हमारे पास ज्यादा पशु होंगे, अब हमारे खेतों में ज्यादा फसल हुआ करेगी, अब कहीं आने-जाने पर रोक नहीं रहेगी, ग्वालों ने अपनी पत्नियों से कहा कि अब गायें ज्यादा दूध देंगी, क्योंकि आजादी मिल गई है. लोगों ने बसों में टिकट खरीदने से इनकार कर दिया, भला आजाद मुल्क में भी कोई टिकट लगा करते हैं। आजादी का समारोह देखने आए सभी की आंखों में आजाद भारत को लेकर अपनी एक समझ थी, अपनी एक सोच थी, अपना एक सपना था, क्योंकि इनमें से कोई भी कभी आजाद मुल्क में नहीं रहा था. लोग देखना चाहते थे कि एक आजाद मुल्क होता कैसा है?’