भक्ति

CHAR DHAM YATRA 2024 : अक्षय तृतीया के मौके पर खुले केदारनाथ धाम के कपाट, आज से शुरु हुई चार धाम यात्रा, जानिए क्या है महत्व

Chardham yatra

शिवभक्तों के लिए बड़ी खुशखबरी है। अक्षय तृतीया के मौके पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ और यमुनोत्री धाम के कपाट पूरे विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सुबह 7 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इसके साथ ही इस साल की चार धाम यात्रा का आरंभ हो गया है। मंदिर समितियों ने बताया है कि गंगोत्री के कपाट दोपहर बाद 12 बजकर 20 मिनट पर खोले गए। जबकि बद्रीनाथ के कपाट 12 मई को सुबह 6 बजे खुलेंगे। मंदिर के कपाट खुलने के समय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी पत्नी गीता धामी के साथ मौजूद रहे।

images 2024 05 10T145824.761 Console Crptech

बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम की यात्रा पूरी तरह से शुरू हो जाएगी। चार धाम यात्रा के लिए 15 अप्रैल से 3 मई तक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू किया गया था, जबकि 8 मई से ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा शुरू की गई थी।सनातन धर्म में चार धाम यात्रा को बहुत है महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति चार धाम में से किसी एक धाम के भी दर्शन कर लेता है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं।

वेद एवं पुराणों में चार धाम यात्रा को बहुत ही शुभ माना गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति चार धाम की यात्रा करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। साथ ही जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। बता दें कि हिंदू धर्म में दो प्रकार की चार धाम यात्रा की जाती है। एक बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा और दूसरा बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका धाम की यात्रा। यह सभी पवित्र धाम देश के विभिन हिस्सों में मौजूद हैं, जिसके कारण इसे बड़ा चार धाम यात्रा भी कहा जाता है। आइए जानते हैं, क्या है चार धाम यात्रा का महत्व और इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें?

images 1 Console Crptech

आज लाखों की संख्या में लोग चारधाम यात्रा के लिए पहुंचते हैं। लेकिन जेहन में सवाल उठता है कि आखिर यह चारधाम यात्रा पहली बार कब शुरू हुई। कहा जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की खोज की थी। उन्होंने ही धार्मिक महत्व के इस स्थान को दोबारा बनाया था। बताया जाता है कि भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति यहां तप्त कुंड के पास एक गुफा में थी और 16वीं सदी में गढ़वाल के एक राजा ने इसे मौजूदा मंदिर में रखा था। जबकि केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। स्थानीय लोग चारों धामों में श्रद्धा पूर्वक जाते थे, लेकिन 1950 के दशक में यहां धार्मिक पर्यटन के लिहाज से आवाजाही बढ़ी। 1962 के चीन युद्ध के चलते क्षेत्र में परिवहन की व्यवस्था में सुधार हुआ तो चार धाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ने लगी।

स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी तक यहां बौद्ध मंदिर होने की बात भी सामने आती है, जिसे बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिंदू मंदिर में दिया।

गंगा को धरती पर लाने का श्रेय पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ को जाता है। गोरखा लोग (नेपाली) ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी दौरान गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था। उधर यमुनोत्री के असली मंदिर को जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। हालांकि कुछ दस्तावेज इस ओर भी इशारा करते हैं कि पुराने मंदिर को टिहरी के महाराज प्रताप शाह ने बनवाया था। मौसम की मार के कारण पुराने मंदिर के टूटने पर मौजूदा मंदिर का निर्माण किया गया है।

देश के चार अलग-अलग कोनों में चार पवित्र तीर्थ स्थल शामिल हैं, जैसे उत्तराखंड में बद्रीनाथ, गुजरात में द्वारका, उड़ीसा में पुरी और तमिलनाडु में रामेश्वरम

1. बद्रीनाथ धाम : हिमालय के शिखर पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर हिन्दुओं की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। यह चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के किनारे बसा है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप में बद्रीनाथ को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर को आदिकाल से स्थापित और सतयुग का पावन धाम माना जाता है। इसकी स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी। बद्रीनाथ के दर्शन से पूर्व केदारनाथ के दर्शन करने का महात्म्य माना जाता है।
134420 ftphzcswiaamed4 Console Crptech

चार धाम में से एक बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’। अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्‍य को जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करना चाहिए।

मंदिर के कपाट खुलने का समय : दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद अप्रैल और मई माह के बीच केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे।

2. जगन्नाथ पुरी : भारत के ओडिशा राज्य में समुद्र के तट पर बसे चार धामों में से एक जगन्नाथपुरी की छटा अद्भुत है। इसे सात पवित्र पुरियों में भी शामिल किया गया है। ‘जगन्नाथ’ शब्द का अर्थ जगत का स्वामी होता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।

images 2024 05 10T164722.979 Console Crptech

इस मंदिर का वार्षिक रथयात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।

3. रामेश्वरम : भारत के तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के किनारे स्थित है हिंदुओं का तीसरा धाम रामेश्वरम्। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। रामेश्वरम् में स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर में केदारनाथ और काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। मान्यता अनुसार भगवान राम ने रामेश्वरम् शिवलिंग की स्थापना की थी। यहां राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व एक पत्थरों के सेतु का निर्माण भी करवाया था, जिस पर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची। बाद में राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था।
images 2024 05 10T145721.953 Console Crptech

4. द्वारका : गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित चार धामों में से एक धाम और सात पवित्र पुरियों में से एक पुरी है- द्वारका। मान्यता है कि द्वारका को श्रीकृष्ण ने बसाया था और मथुरा से यदुवंशियों को लाकर इस संपन्न नगर को उनकी राजधानी बनाया था। कहते हैं कि असली द्वारका तो समुद्र में समा गई थी लेकिन उसके अवशेष के रूप में आज बेट द्वारका और गोमती द्वारका नाम से दो स्थान हैं।

द्वारका के दक्षिण में एक लंबा ताल है, इसे गोमती तालाब कहते हैं। इसके नाम पर ही द्वारका को गोमती द्वारका कहते हैं। गोमती तालाब के ऊपर नौ घाट हैं। इनमें सरकारी घाट के पास एक कुंड है जिसका नाम निष्पाप कुंड है। इसमें गोमती का पानी भरा रहता है। उक्त चारों धाम के मार्ग में देश के सभी प्रमुख तीर्थ स्थल पड़ते हैं जिससे उन सभी के दर्शन भी हो ही जाते हैं।

images 2024 05 10T164550.571 Console Crptech

यहां आवश्यक जानकारी है जो यात्रा की योजना बनाते समय आपकी मदद करेगी

यात्रा आपकी सुविधानुसार दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून से शुरू हो सकती है।
चार धाम यात्रा का बायोमेट्रिक पंजीकरण अनिवार्य है।
आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, या पासपोर्ट जैसे आवश्यक दस्तावेज यात्रा में अपने साथ ले जाएं।
स्विस कॉटेज में शिविर सुविधाएं तीर्थ के पास उपलब्ध हैं और मूलभूत सुविधाओं से सुसज्जित हैं। डीलक्स और बजट आवास भी उपलब्ध हैं।
श्रद्धालुओं के लिए हेलीकॉप्टर द्वारा चार धाम यात्रा भी उपलब्ध है। बुकिंग की ऑफलाइन और ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध है। जो लोग चलने में असमर्थ हैं, उनके लिए पालकी, घोड़ा और पिट्ठू भी उपलब्ध हैं।
यात्रा के दौरान गर्म जैकेट, दस्ताने, स्वेटर, ऊनी मोजे और रेनकोट ले जाना ना भूलें।
यात्रा के दौरान अच्छी पकड़ वाले आरामदायक जूते ही पहने।

Related Articles

Back to top button
शिल्पा शेट्टी ने कही कुछ अनकही बातें