
पूरे देश मे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा छठ महापर्व
ChhathPuja2025 : छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का पवित्र उत्सव है, जो हर साल दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाता है।
इस पर्व में श्रद्धालु उपवास रखकर अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। व्रतधारी महिला और पुरुष — जिन्हें “पर्वइया” कहा जाता है — चार दिनों तक जल और अन्न त्याग कर कठोर नियमों का पालन करते हैं।
चार दिनों की पावन परंपरा
1. नहाय-खाय
पर्व का पहला दिन। व्रती नदी या तालाब में स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।
2. खरना
दूसरे दिन उपवास और शाम को गुड़-चावल की खीर, रोटी व केले का प्रसाद।
3. संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन महिलाएँ घाट पर पहुँचकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
4. उषा अर्घ्य
चौथे दिन सुबह उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है।
प्रकृति और स्वच्छता से जुड़ा पर्व
छठ पूजा में पर्यावरण की अहम भूमिका होती है। इस दिन लोग जलाशयों की सफाई करते हैं, बाँस के बने सूप, दउरा और मिट्टी के दीपक का उपयोग करते हैं — जो पूरी तरह पर्यावरण हितैषी है।
लोकगीतों में बसती श्रद्धा
“कांची हे बाबा सूर्य देव” और “केलवा जे फरेला घवद से” जैसे लोकगीतों की गूंज से घाटों का माहौल भक्ति और समर्पण से भर जाता है। यह गीत लोक परंपरा की आत्मा हैं, जो पीढ़ियों को जोड़ते हैं।
सूर्य उपासना का वैज्ञानिक महत्व
सूर्य जीवन का आधार है। सूर्य की किरणें शरीर में विटामिन-डी प्रदान करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। छठ पूजा के दौरान सूर्य की सीधी उपासना स्वास्थ्य, मनोबल और ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है।
छठ पूजा का संदेश
“आस्था में है शक्ति, और सूर्य में जीवन — यही छठ महापर्व का सार है।”





