सुख समृद्धि के लिए शुक्रवार को जरूर करें संतोषी माता की पूजा, पढ़ें कथा
शुक्रवार के दिन पूरे विधि विधान के साथ मां संतोषी की पूजा की जाती है. इस दिन मां संतोषी की पूजा करना शुभ माना जाता है. इस दिन उपवास रहकर संतोषी माता की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी व्यक्ति माता संतोषी का व्रत रखता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. मन में शांति का विस्तार होता है और घर में खुशियां आती हैं। शुक्रवार का वर्त करने से सारे पाप दोष खत्म हो जाते हैं. आइए आपको बताते हैं माता संतोषी की कथा के बारे में।
एक बुढ़िया थी उसके सात पुत्र थे, छह कमाने वाले थे, एक निक्कमा था बुढ़िया माँ अपने छहो पुत्रो को भोजन कराती और बचा हुआ जूठन सातवे बेटे को दे दिया करती थी। इस तरह दिन बीत रहे थे,एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा देखो मेरी माँ मुझसे कितना प्यार करती है। वह बोली क्यो नही सबका बचा हुआ जूठन जो तुमको खिलाती है।उसने कहा ऐसा भी कभी हो सकता है।जबतक मैं अपनी आँखों से ना देखू मान नही सकता तब बहु ने हसकर कहा तुम देख लोगे तब तो मानोगे न, कुछ दिन बाद एक बड़ा त्यौहार आया घर मे अनेक प्रकार के व्यंजन और चूरमा के लड्डू बने, वह जांचने के लिए सिरदर्द का बहाना बनाकर पतला कपड़ा सिर पर ओढ़कर सो गया। और कपड़े में से सब देखता रहा, उसने देखा मा ने उनके लिए सुंदर सुंदर आसन बिछाये है. सात प्रकार की रसोई परोसी है आग्रह कर उन्हें जिमाती है, वह देखता रहा छहो भाई भोजन कर उठे तब मा ने उनकी जूठी थालियों में से लड्डू के टुकड़ों को उठाया और एक लड्डू बनाया जूठन साफ कर उसकी माँ ने पुकारा उठ बेटा छहो भाई भोजन कर गए, अब तू ही बाकी है उठ न कब खायेगा। तब उसने कहा माँ मुझे भोजन नही करना मैं परदेश जा रहा हूं। तब माँ ने कहा कल जाता हो तो आज ही चला जा,यह सुनकर वह बोला हा आज ही जा रहा हूं. यह कहकर वह घर से निकल गया। चलते समय बहू की याद आई वह गौशाला में कंडे थाप रही थी।
उसके पास जाकर बोला – हम जाए परदेश को आएंगे कुछ काल, तुम रहियो संतोष से धरम अपनो पाल देऊ निशानी आपनी देख धरु मैं धीर सुधि हमारी मति बिसारियो रखियो मन गंभीर मेरे पास कुछ नही है। ये अंगूठी है इसे ले लो और अपनी कुछ निशानी मुझे दो तब वह बोली मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ भी नही है, ऐसा कहकर उसने उसके पीठ पर गोबर की हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया चलते-चलते वह दूर देश मे पहुचा वहाँ पर एक साहूकार की दुकान थी, उसने साहूकार से कहा मुझे काम पर रख लो साहूकार को भी जरूरत थी साहूकार ने उसे काम पर रख लिया, तब उसने कहा तनख्वाह क्या दोगे साहूकार ने कहा काम देखकर दाम मिलेंगे उसे साहूकार की नॉकरी मिल गई। वह सुबह से लेकर शाम रात तक मन लगाकर काम करने लगा, साहूकार के सात आठ नॉकर और थे, वह सब चक्कर खाने लगे कि यह तो बहुत होशियार बन गया। और सेठ ने भी उसका काम देखा और तीन महीने में उसे आधे मुनाफे का साझीदार बना लिया, इस तरह से वह बारह वर्ष में एक नामी सेठ बन गया, और मालिक अपना सारा कारोबार उस पर छोड़कर बाहर चला गया।
इधर बहू पर क्या बीती सुनो सास ससुर उसे दुःख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराने के बाद उसे लकड़ी लेने जंगल भेजते थे, इस बीच घर के आटो से बची भूसी की रोटी बनाकर और नारियल के नरेली में पानी उसे देते थे, ऐसे ही दिन बीतता रहा। एक दिन वह लकड़ी लेने जंगल जा रही थी, कि बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करते दिखाई दी वह वहाँ रुकी उनसे पूछा यह तुम किस देवता की पूजा कर रही हो और इसके करने से क्या फल मिलता है, इस व्रत के करने की क्या विधि है। कृपया मुझे बताइये। तब उनमे से एक स्त्री ने कहा कि यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है, घर मे लक्ष्मी आती है,मन चिंताओं से मुक्त होता है, कुवारी कन्याओ को मन पसंद वर मिलते है, राजद्वारो में बहुत दिनों से मुकदमा चलता हो तो खत्म हो जाता है। कलह क्लेश की नृवित्त सुख शांति रोग दोष सब दूर हो जाते है, जिसका पति बाहर गया हो वह शीघ्र आ जाता है। इस तरह से संतोषी माँ अपने भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करती है। यह सुनकर वह आगे कुछ दूर चली ही थी कि सामने मंदिर देख उसने लोगो से पूछा यह मंदिर किसका है, सबने बताया की यह मंदिर संतोषी माँ का है। यह सुन वह माता के मंदिर में गई। और माता के चरणों मे लोटने लगी और विनती कर कहने लगी, हे जगजननी मेरा दुःख दूर करो मैं तुम्हारी शरण मे हूं। तब माता को दया आई और दूसरे सप्ताह उसके पति का पत्र और भेजा हुआ पैसा भी उसके पास आया। यह देख जेठ जेठानी मुँह सिकोड़ने लगे। इतने दिनों में इतना पैसा आया है, इसमें क्या बड़ाई है, लड़के भी ताना देने लगे अब तो काकी के पास पत्र आने लगे रुपये आने लगे अब तो काकी की खतिर बढ़ेगी अब तो काकी बुलाने से भी नही बोलेगी बेचारी सरलता से कहती भैया पत्र आये रुपया आये ये तो हम सब के लिए अच्छा है। ऐसा कहकर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर गई, और माता के शरण मे रोने लगी माँ मैंने तुमसे पैसा नही मागा मुझे पैसे से क्या काम मुझे तो अपने सुहाग से काम है। तब माता ने प्रशन्न होकर कहा जा बेटी तेरा स्वामी आएगा इतना सुन वह खुशी से बाबली हो घर जाकर काम करने लगी अब संतोषी माँ विचार करने लगी कि इस भोली पुत्री से मैंने कह तो दिया तेरा स्वामी आएगा पर वह आएगा कैसे वह तो इसे स्वप्न में भी याद नही करता। उसे याद दिलाने मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता उस बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी ओ साहूकार के बेटे तू सोता है या जागता है। तब उसने कहा माता सोया भी नही हूं जागा नही हूं। बीच मे हूं कहिये क्या आज्ञा है, तब माता ने कहा तेरा घर बार कुछ है या नही उसने कहा आपकी दया से सब कुछ है माँ बाप भाई बहन बहू क्या कमी है। तब माँ बोली बेटा तेरी घरवाली घोर कष्ट उठा रही है। तेरे माँ बाप उसे बहुत दुःख दे रहे है वह तेरे दरस के लिए तरस रही है। तू उसकी सुधि ले वह बोला यह तो मुझे भी मालूम है पर जाऊ तो जाऊ कैसे परदेश की बात है लेन देन का कोई हिसाब नही जाने का कोई रास्ता नजर नही आता कैसे चला जाऊं तब माँ ने कहा कल सुबह नहाधोकर सन्तोषी माँ को घी का दीपक जला दुकान पर बैठना देखते देखते तेरा लेन देन सब चूक जाएगा जमा माल सब बिक जाएगा। यह कहकर माता अंतर्ध्यान हो गई। सुबह जल्दी उठ उसने अपने मित्र बंधुओ से सपने की बात कही सब उसकी बात को अनसुनी कर दिल्लगी उड़ाने लगे की कही सपने भी सच होते है, तब उनमे से एक बूढ़ा आदमी बोला देख भाई मेरी बात मान सच झूठ करने के बदले देवता ने जैसा कहा है वैसा करने में तेरा क्या जाता है अब वह उस बूढ़े की बात मान सुबह नहाधोकर सन्तोषी माँ को घी का दीपक जला दंडवत कर दुकान पर जा बैठा थोड़ी देर में वह क्या देखता है के देने वाले रुपया लाये और हिसाब लेने वाले हिसाब लेने लगे इस तरह से कोठे में भरे सामानों के खरीदार नगद दाम में सौदा करने लगे और शाम तक धन का ढेर लग गया। मन मे माता का नाम ले प्रशन्न हो घर जाने के वास्ते गहना कपड़ा और सामान खरीदने लगा और तुरंत घर को रवाना हुआ। उधर बहु बेचारी जंगल से लौटते वक्त माता के मंदिर में विश्राम करती थी वह तो उसके रोज रकने का स्थान था, दूर से धूल उड़ते देख उसने माता से पूछा माँ यह धूल कैसी उड़ रही है। तब माता ने कहा जा बेटा तेरा मालिक आ रहा है। ऐसा कर लकड़ीयो के तीन बोझ बना ला एक नदी किनारे पर दूसरा मेरे मंदिर पर और तीसरा अपने सिर पर तेरे पति को लकड़ी का गट्ठा देख कर मोह पैदा होगा वह यहाँ नाश्ता पानी बना खा पी कर वह माँ से मिलने जाएगा तब तू बीच चौक में लकड़ी का गट्ठा डालकर जोर से तीन आवाजे लगाना लो सासू जी लकड़ी का गट्ठा लो और भूसे की रोटी और नारियल के नरेली में पानी दो आज कौन मेहमान आया है। यह सुनकर वह लकड़ीयो के तीन गठ्ठे ले आई एक नदी किनारे दूसरा मन्दिर पर इतने में ही वहाँ एक मुसाफिर आ पहुँचा सुखी लकड़ी देख उसकी इच्छा हुई, कि यही विश्राम कर खा पीकर गाँव जाय वह विश्राम घर पहुँचा तभी बहू लकड़ी का गट्ठा लिए आती है और उसे आंगन में डाल जोर से तीन आवाज़ लगाती है। लो सासू जी लकड़ी का गट्ठा लो और भूसी की रोटी और नारियल के नरेली में पानी दो आज कौन मेहमान आया है। तब मा अपने दिए हुए कष्टो को भुलाने हेतु कहती है बहू ऐसा क्यों कहती है तेरा मालिक ही तो आया है आ बैठ मीठा भात खा कपड़े गहने पहन इतने आवाज़ सुन उसका स्वामी बाहर आता है। और हाथ मे अंगूठी देख व्याकुल हो मा से पूछता है मां यह कौन है तब मा कहती है बेटा यह तेरी बहु है, आज बारह वर्ष हो गए जब से तू गया है तब से ये सारे गाँव मे जानवर की तरह भटकती फिरती है, घर का काम काज कुछ नही करती चार समय आकर खा जाती है अब तुझे देखकर भूसी की रोटी और नारियल के खोटले में पानी मांगती है। तब उसने कहा माँ मैंने तुम्हें भी देखा है और इसे भी देखा है अब मुझे दूसरे घर की ताली दो तब मैं उसमे रहूंगा मा ने जैसी तेरी इच्छा ऐसा कहकर चाबी का गुच्छा पटक दिया उसने दूसरे कमरे की ताली लेकर जो तीसरी मंजिल के ऊपर था खोलकर सारा सामान जमाया एक दिन में ही वह राजा के महल जैसा ठाटबाट बन गया, अब क्या था वो दोनों सुख भोगने लगे इतने में अगला शुक्रवार आया उसने अपने पति से कहा मुझे माता का उद्यापन करना है पति ने कहा खुशी से करो वह तुरंत ही उद्यापन की तैयारी करने लगी, और जेठ के लड़कों को भोजन के लिए कहने लगी जेठानी ने पहले तो एक दो बातें सुनाई फिर लड़को को सीखा दिया कि देखो रे सब लोग भोजन के समय सब लोग खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा ना हो लड़के जीमने आये खीर पेट भर खाई फिर याद आते ही कहने लगे हमे कुछ खटाई दो बहु ने खटाई देने से मना किया तो बोले पैसा लाओ भोली बहु कुछ जानती नही थी सो उन्हें पैसे दिए उन पैसो से लड़को ने ईमली लेकर खाई जिस पर माता ने प्रकोप किया कि राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए अब जेठ जेठानी मनमाने खोटे वचन कहने लगे लुटलूट कर धन लाया था, अब मालूम पड़ेगा जब जेल की हवा खायेगा बहु से यह वचन सहन नही हुए वह रोते रोते माता के मंदिर में गई। और कहने लगी माता तुमने यह क्या किया हँसाकर क्यो रुलाने लगी माता ने कहा बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग कर दिया इतनी जल्दी सब बातें भुला दी। उसने कहा माता भूली तो नही ना कुछ अपराध किया मुझे तो लड़को ने भूल में डाल दिया मैंने भूल से उन्हें पैसे दे दिए मुझे क्षमा करो माँ मैं फिर से तुम्हारा उद्यापन करूँगी माँ ने कहा अब भूल मत करना अब भूल नही होगी माँ अब बताओ वह कैसे आएंगे माँ ने कहा जा बेटी तेरा मालिक तुझे रास्ते में आता मिलेगा वह मंदिर से निकली की राह में उसका पति आता मिला उसने पूछा तुम कहा गए थे, तब उसने कहा इतना धन जो कमाया है उसका टेक्स राजा ने मांगा था वह भरने गया था भला हुआ अब घर चलो कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया उसने अपने पति के कहा मुझे माता का उद्यापन करना है पति ने कहा करो फिर वह जेठ के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई, लड़के फिर खाने से पहले कहने लगे हमे खीर खाना भाता नही जी बिगड़ता कुछ खटाई खाने को दो बहु बोली खटाई खाने को नही मिलेगी खाना है तो खाओ यह कहकर उसने ब्राह्मणो के लड़कों को लाकर भोजन कराया यथा सक्ति दक्षिणा की जगह उन्हें एक एक फल दिया जिससे माता प्रसन्न हुई। नवे मास ही उनको चन्द्रमा के समान सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ बहु रोज अपने पुत्र को लेकर माता के मंदिर जाती थी, माता ने सोचा यह रोज आती है आज क्यो ना मैं इसके घर चलू इसका आसरा देखू तो सही यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया गुड़ और चने से सना मुख उस पर मक्खियां ही मक्खियां भिनभिना रही थी दहलीज़ में पाव रखते ही उसकी सास चिल्लाई देखो रे कोई चुड़ैल डाकनी चली आ रही है लड़को इसे भगाओ नही तो यह किसी को खा जाएगी लड़के चिल्लाने लगे और खिड़की दरवाजे बंद करने लगे बहु रोशनदान में से सब देख रही थी। प्रसन्ता से पगली होकर चिल्लाने लगी आज मेरी माता जी मेरे घर आई है यह कहकर बच्चे को दूध पिलाने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फूट पड़ा बोली मरी राड़ इसे देखकर तू कैसी उतावली हुई जो तूने मेरे पोते को ही पटक दिया अब माँ के प्रताप से जहाँ देखो वहाँ लड़के ही लड़के नजर आने लगे बहु बोली मा जी मैं जिनका व्रत करती हूं। ये वही संतोषी माता है। इतना कह झट से घर के सारे किवाड़ खोल देती है। सबने माता के चरण पकड़ लिए और विनती करने लगे हे माता हम मूर्ख है अज्ञानी है पापी है आपकी विधि हम नही जानते आपका व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है, हे माता आप हमारे अपराध को क्षमा करें। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई माता ने बहु को जैसा फल दिया वैसा सबको दे। जो यह कथा पढ़े या सुने उसकी मनोकामना पूर्ण हो। बोलो संतोषी माता की जय
ग्रन्थ करोड़रन में कहै ये सबका है सार ब्रम्ह सत्य सब झूठ है जीव ही ब्रम्ह निहार जीव से ही जीवित माता खेलत खेल ब्रम्ह रूप पहचान लो कटे जगत की जेल
ये है संतोषी माता की व्रत कथा हम अगले लेख में आपको संतोषी माँ की पूजन विधि के बारे में बताएंगे