संस्कृत से है भारतीय संस्कारों की पहचान : डॉ. जगदेव
सक्ती / अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय महाविद्यालय नगरदा मे दिनांक 27 अगस्त से 2 सितम्बर तक आयोजित संस्कृत सप्ताह कार्यक्रम समापन के दौरान कही गई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कार्यक्रम प्रभारी प्रो. डा. अरविन्द कुमार जगदेव ने कहा कि संस्कृत आदि भाषा होने के साथ भारतीयों के लिए आज भी गौरव की भाषा है। सारे पौराणिक ग्रंथ इसी भाषा में लिखे गए हैं, एक समय यह बोलचाल की भी भाषा थी, जिसे लौकिक संस्कृत के नाम से जाना जाता था। आज संस्कृत के जानकार बहुत कम रह गए हैं। संस्कृत को उच्च कक्षाओं में अनिवार्य शिक्षा का अंग बनाने की जरूरत है, जिससे हर पढ़ा लिखा इंसान शास्त्रीय ज्ञान को ठीक से समझ सके और जीवन में उतार सकें, सुसंस्कृत हो सकें। भारतीय संस्कारों की पहचान सुसंस्कृत से है। प्रथम दिवस संस्था के प्राचार्य डा.के.पी. कुर्रे द्वारा माँ सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वालित करके संस्कृत सप्ताह का शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात द्वितीय दिवस दिनांक 28 अगस्त को दीर्घ अवकाश के पश्चात महाविद्यालय के समस्त विद्यार्थियों को संस्कृत की महत्ता पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ प्राध्यापक डा अमित तिवारी ने बताया की जो बाते हमारे वेद शास्त्रों में सदियों पहले लिखी गई वही बातें आज सच साबित हो रही हैं। छात्र – छात्राओं द्वारा भी संस्कृत पर विचाराभिव्यक्ति एवं चिन्हाकित विषयों पर निबंध लेखन किया गया। निबंध लेखन में लगभग 40 से अधिक छात्र छात्राओं ने भाग लिया जिसमें बीएससी प्रथम वर्ष से नोवल ऋषिकेश, प्रीति खूंटे, मनोज केवट ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवम तृतीय स्थान हासिल किए। तृतीय दिवस दिनांक 29 अगस्त को संस्कृत सुभाषित श्लोकों का सस्वरवाचन संस्कृत संभाषण किया गया । दिनांक 30 अगस्त चतुर्थ दिवस को महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. के. पी. कुर्रे ने संस्कृत भाषा में रचित वेद, उपनिषद, ब्राम्हण ग्रन्थ, आरण्यक आदि विषयों को आधार बनाकर भारत की प्राचीन परंपरा पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर उपस्थित अतिथियों का साल एवम श्रीफल से सम्मान किया गया। दिनांक 31 अगस्त पंचम दिवस को संस्कृत के सेवा निवृत शिक्षक/ छात्र / संस्कृत भाषा में निपुण स्थानीय लोगों को आमंत्रित कर उनका सम्मान किया गया। इस अवसर पर संस्कृत भाषा का अध्ययन जरुरी है अथवा नहीं विषय पर परिचर्चा ( वाद- विवाद ) का आयोजन भी किया गया। दिनांक 1 सितम्बर षष्ठम दिवस मे महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक आशीष दुबे ने संस्कृत के विभूतियों कालीदास, वेद व्यास, पाणिनी आदि संस्कृत के कवियों का जीवन परिचय से अवगत कराए । उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा की सज्जन पुरुष बिना कहे ही दूसरों का भला कर देते हैं जिस प्रकार सूर्य घर-घर जाकर प्रकाश देता है। महर्षि वेद ब्यास के बारे मे बताते हुए कहा की वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो उस काल में क्रमानुसार घटित हुई थी। अंतिम दिवस 2 सितंबर को संस्कृत सप्ताह का समापन किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो. मुन्ना लाल सिदार सहायक प्राध्यापक इतिहास ने किया। समापन के अवसर पर संस्कृत के नारे जयतु जयतु संस्कृत भाषा, वदतु वदतु संस्कृत भाषा, मधुरा भाषा संस्कृत भाषा, जयतु छत्तीसगढ़ जयतु भारतम का सामूहिक उद्घोष किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक गण जिसमें मनोज सायर, रवि खूंटे, हेमंत चंद्राकर, दीप्ति राठौर, कविता कश्यप, कार्यालयीन स्टाफ सहित भारी संख्या में महाविद्यालयीन छात्र छात्राएं उपस्थित थे।