
श्रद्धा और भक्ति के साथ गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जा रहा है।
GOVARDHAN PUJA : देशभर के मंदिरों और घरों में सुबह से ही पूजा-अर्चना की गई। भक्तों ने गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बनाकर भगवान श्रीकृष्ण, गाय माता और धरती माता की पूजा की। गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्रदेव के अहंकार को तोड़ने और प्रकृति की महिमा बताने की स्मृति में मनाई जाती है।
भक्तों ने विविध व्यंजन और 56 भोग तैयार कर श्रीकृष्ण को अर्पित किए। मंदिरों में गोवर्धन परिक्रमा, भजन-कीर्तन और अन्नकूट भंडारा का आयोजन किया गया। वृंदावन, मथुरा और गोवर्धन में यह पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ में भी श्रद्धालु पारंपरिक रीति से पूजा कर “गोवर्धन महाराज की जय!” के जयघोष कर रहे हैं।
पूजा मुहूर्त (शुभ समय)
- गोवर्धन पूजा प्रारंभ: सुबह 06:36 बजे से
- अन्नकूट पूजा का शुभ मुहूर्त: 10:43 बजे से 12:26 बजे तक
- गोवर्धन परिक्रमा का श्रेष्ठ समय: प्रातःकाल से दोपहर तक
(मुहूर्त पंचांग के अनुसार स्थान विशेष पर थोड़ा भिन्न हो सकता है)
पूजा विधि
- सुबह स्नान कर घर को स्वच्छ करें और पूजा स्थल पर गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बनाएं।
- उस पर फूल-माला, दीपक, मिठाई और जल चढ़ाएं।
- भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत, गाय माता और धरती माता की पूजा करें।
- अन्नकूट भोग — 56 या अधिक प्रकार के व्यंजन बनाकर श्रीकृष्ण को अर्पित करें।
- पूजा के बाद गोवर्धन परिक्रमा करें और “गोवर्धन महाराज की जय!” का जयघोष करें।
गोवर्धन पूजा कथा
एक बार गोकुलवासी हर वर्ष की तरह इंद्र देव की पूजा कर रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि हमें वर्षा देने वाली असली शक्ति इंद्र नहीं, बल्कि यह प्रकृति और गोवर्धन पर्वत है।
ग्वालबालों ने इंद्र पूजा रोककर गोवर्धन पर्वत की पूजा की।
इससे इंद्र देव क्रोधित होकर मूसलाधार वर्षा करने लगे।
तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे गोकुल की रक्षा की। सात दिन तक वर्षा होती रही, परंतु किसी को हानि नहीं हुई। अंततः इंद्र ने अहंकार त्याग दिया और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इसलिए इस दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है — जो प्रकृति, गाय और धरती की महिमा का प्रतीक है।
गोवर्धन पूजा का संदेश
प्रकृति से प्रेम करें, अहंकार का त्याग करें और सादगी से जीवन जिएं।