
नई दिल्ली / भारत के इतिहास में नागरिक अधिकारों को सशक्त बनाने वाला एक ऐतिहासिक आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अब किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले या तुरंत बाद, उसे लिखित रूप में गिरफ्तारी का कारण बताया जाना अनिवार्य होगा। अदालत ने साफ किया कि किसी भी एजेंसी—चाहे वह पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय (ED) या केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) हो—मनमाने ढंग से किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी तभी वैध मानी जाएगी जब उसका कारण आरोपी की समझ में आने वाली भाषा में लिखित रूप से बताया गया हो। यदि ऐसा नहीं किया गया तो गिरफ्तारी और बाद की रिमांड दोनों अवैध मानी जाएंगी।
अदालत के मुख्य बिंदु:
- गिरफ्तारी का कारण लिखित रूप में देना अनिवार्य।
- जानकारी आरोपी की समझ वाली भाषा में होनी चाहिए।
- केवल मौखिक जानकारी पर्याप्त नहीं।
- यदि तत्काल लिखित कारण न दे सकें तो रिमांड से कम से कम दो घंटे पहले लिखित नोटिस देना होगा।
- नियम का पालन न करने पर गिरफ्तारी रद्द मानी जाएगी।
संविधान का संरक्षण
न्यायमूर्ति मसीह ने 52 पन्नों के फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तारी के कारण बताना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मौलिक सुरक्षा है। अदालत ने कहा कि आरोपी को “यथाशीघ्र” यह जानकारी देना आवश्यक है ताकि वह अपने कानूनी अधिकारों का उपयोग कर सके।
आदेश पूरे देश में लागू
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह आदेश सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और हाईकोर्ट्स तक भेजा जाए ताकि इसे तुरंत प्रभाव से पूरे भारत में लागू किया जा सके।
पृष्ठभूमि
यह फैसला जुलाई 2024 में मुंबई के बहुचर्चित BMW हिट-एंड-रन केस से जुड़े मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में सुनाया गया।





