MAHASHIVRATRI 2024 : महाशिवरात्रि पर शिव मंदिरों में भक्तों का लगा तांता, हर हर महादेव के जयकारों से गूंज रहे शिवालय
Mahashivratri
देश भर में महाशिवरात्रि बड़े ही धूमधाम से मनाई जा रही है। सुबह से ही शिव भक्त बड़ी संख्या में मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना कर रहे हैं और शिवलिंग पर जल चढ़ा रहे हैं। सभी मंदिरों में शिव भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिली और मंदिरों को भी काफी अच्छे से सजाया गया है।
आज सुबह चार बजे से ही मंदिरों में शिव भक्त पहुंचना शुरू हो गए थे। महाशिवरात्रि के पर्व पर ज्यादातर लोग व्रत रखते है। लेकिन खासतौर पर लड़कियां और महिलाएं व्रत रखती हैं। महाशिवरात्रि को लेकर शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं के पूजा पाठ करने के लिए विशेष तैयारी की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि का खास महत्व होता है। माना जाता है। कि इसी दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। शास्त्रों की माने तो महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ो सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योर्तिलिंग में प्रकट हुए थे इसके बाद से हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है।
पुजारी जी कहते है, कि महाशिवरात्रि के पर्व पर हम शिव जी की उपासना करते हैं। भक्तजन सारी रात जागकर इस शुभ प्रहर में शिवरात्रि का उत्सव मनाते हैं। यज्ञ, वेद मंत्रों के उच्चारण, साधना और ध्यान के माध्यम से वातावरण में दिव्यता की अनुभूति होती है। इन पवित्र क्रियाकलापों के माध्यम से आप स्वयं के साथ और पूरी सृष्टि के साथ एकरस हो जाते हैं।
कहा जाता है कि इसी दिन शिव के 64 ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे जिनमें से केवल 12 ही दृश्यमान है। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे भोले, शंकर, महादेव, महाकाल, नटराज, नीलकंठ, शशिधर, गंगाधर, शम्भू, महारुद्र इत्यादि। इस दिन पूरा दिन निराहार व्रत रहकर भोले बाबा की पूजा की जाती है तथा रात्रि जागरण करके शिव को प्रसन्न करने की चेष्टा की जाती है।
भगवान शिव के साधु जैसा रूप और साँप बिच्छुओं से प्यार मनुष्यों को त्याग और जीव मात्र से प्रेम की शिक्षा देता है। नीलकंठ का रूप कैसा निराला है वैसे ही उनकी पूजा भी निराली है वह भांग, धतूरे जैसे जंगली फलो और बेल के पत्ते से ही खुश हो जाते है। महादेव को प्रसन्न करने के लिये किसी अनुस्ठान एवं पुजा आदि की आवश्यकता नही होती है वह थोड़े प्रसाद में ही प्रसन्न हो जाते है तभी तो भोले बाबा कहे जाते है।
भगवान शिव हर जगह व्याप्त हैं। हमारी आत्मा में और शिव में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए यह भजन भी गाते हैं, “शिवोहम शिवोहम…” मैं शिव स्वरुप हूँ। शिव सत्य के, सौंदर्य के और अनंतता के प्रतीक है। हमारी आत्मा का सार हैं- शिव। हमारे होने का प्रतीक हैं- शिव। जब हम भगवान शिव की पूजा करते हैं तो उस समय हम, हमारे भीतर उपस्थित दिव्य गुणों को सम्मान कर रहे होते हैं।
राजाभैया न्यूज़ डॉट कॉम की तरफ से आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं