
Durga puja
नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की आराधना की जाती है। सप्तमी का दिन माँ दुर्गा के सातवें रूप माँ कालरात्रि को समर्पित है। यह स्वरूप भय का नाश करने वाला और भक्तों को निर्भयता प्रदान करने वाला माना जाता है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप
माँ कालरात्रि का रूप अत्यंत उग्र और भयानक प्रतीत होता है, किंतु वे भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं। श्यामवर्णी शरीर, बिखरे हुए केश और गले में बिजली समान माला। चार भुजाएँ – दो में वरमुद्रा और अभयमुद्रा, शेष में खड्ग और कांटे वाला अस्त्र।वाहन – गधा (गर्दभ)। नाम – शुभंकरणी, क्योंकि इनकी कृपा से जीवन के सभी कार्य शुभ होते हैं।
सप्तमी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब असुर रक्तबीज का आतंक पूरे ब्रह्मांड में फैल गया था। उसकी विशेषता थी कि उसकी रक्त की हर बूँद से नया असुर जन्म ले लेता था। देवताओं ने हार मानकर माँ दुर्गा की शरण ली।
माँ ने तब अपना उग्र रूप कालरात्रि धारण किया। युद्ध के दौरान उन्होंने रक्तबीज का वध किया और उसके रक्त को अपने मुख में समाहित कर लिया ताकि वह धरती पर न गिरे। इस प्रकार रक्तबीज का संहार हुआ और देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
पूजा-विधि
1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. कलश स्थापना व माँ कालरात्रि की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
3. लाल या नीले फूल, धूप-दीप, गुड़, शहद और पान अर्पित करें।
4. मंत्र जपें –
“ॐ कालरात्र्यै नमः”
5. दुर्गा सप्तशती अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करें।
6. अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।
पूजा का महत्व
भय, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों का नाश।
साधक को साहस, आत्मबल और निर्भयता की प्राप्ति।
घर-परिवार में शांति और समृद्धि का वास।
आध्यात्मिक उन्नति और साधना की सिद्धि।
सप्तमी का भोग और शुभ रंग
भोग – गुड़ और शहद माँ को प्रिय हैं।
शुभ रंग – नीला वस्त्र धारण करना इस दिन अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।
उपसंहार
माँ कालरात्रि भले ही उग्र रूप में दिखती हों, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए करुणामयी और कल्याणकारी हैं। सप्तमी के दिन उनकी पूजा करने से जीवन से भय, संकट और दुर्भाग्य दूर होकर सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
“जय माँ कालरात्रि!”