छत्तीसगढ़

CHHATTISGARH : शख्सियत ! 32 वर्षों से मानव सेवा की एक मिसाल यह भी, वैद्य राधेश्याम असाध्य बीमारियों का करते हैं निःशुल्क चिकित्सा

नर सेवा नारायण सेवा के उद्देश्य से अनुप्ररित आयुर्वेद वैद्य राधेश्याम अग्रवाल का शशिभूषण सोनी से विस्तृत चर्चा।

कोरबा / कहा जाता हैं कि अगर निःस्वार्थ भाव से कार्य किया जाए तो उसके परिणाम भी सुखद होते हैं । निःशुल्क और निःस्वार्थ भाव से सेवा कार्य का लाभ जहां उस खास मनुष्य को मिलता हैं, वही सेवा करने वाले को एक अलग ही संतुष्टि की अनुभूति होती हैं और कार्य करने के प्रतिफल स्वरुप उसकी सच्ची कमाई भी हैंं। काले हीरे की नगरी कोरबा में एक ऐसी ही मानवता की मिसाल है डॉ. राधेश्याम अग्रवाल जी।

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असाध्य बीमारियों का करते हैं ईलाज

जगतनंदिनी आदि मां कैलो देवी के अन्ययन भक्त, आयुर्वेद रत्न विशारद वैद्य लेकिन पेशे से थोक एवं चिल्हर कपड़ा व्यापारी राधेश्याम अग्रवाल ने दैनिक समाचार-पत्रों से सम्बद्ध शशिभूषण सोनी से विस्तृत चर्चा की। इतवारी बाजार स्थित मुख्य सड़क मार्ग पर इनकी संतोषी साड़ी सेंटर के नाम से दुकान हैं। दिन भर कपड़े की विक्रय करने के साथ-साथ असाध्य बीमारियों के ईलाज के लिए दूरदराज से मरीज़ पूछते हुए आते हैं। आज़ जब आवश्यक कार्य के सिलसिले में कोरबा मार्केट जाना हुआ, सफ़ेद कुर्ता, पाजामा और हाथ में सोने की दो-दो अंगूठी तथा गले में चमचमाती हुई सोने की चैन पहने मुझे दूर से ही पहचान लिए, मैं चरण स्पर्श कर आशिर्वाद प्राप्त किया ।

वैद्य की उपाधि से अलंकृत राधेश्याम अग्रवाल हजारों-लाखों मरीजों को अपने उपचार से भला-चंगा कर चुके हैं। सबसे खास बात यह है कि अग्रवाल जी इस सेवा कार्य को प्रथम प्राथमिकता देते हैं और अपने यहां आए हुए मरीजों से एक रुपया भी नही लेते हैं बल्कि वे अपनी ओर से मरीजों को लगने वाली दवाईयां , तेल और सीरप भी उपलब्ध कराते हैं। अहंकार से कोसों दूर अग्रवाल जी सहज-सरल एवं मृदुभाषी हैं। उनके यहां पहुंचने वाले हजारों लोग विभिन्न बीमारियों से मुक्त हो चुके हैं। बार-बार मेरे द्वारा पूछने पर अग्रवाल जी यही कहते हैं कि यह सब उनकी अधिष्टात्री कैलो देवी का आशीर्वाद ही हैं। मैं तो बस अपनी मां की ही आज्ञा का पालन कर रहा हूं।

राधेश्याम अग्रवाल का जन्म स्थली मूल रूप से उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिला हैं, उनकी शिक्षा-दीक्षा भी यही सम्पन्न हुई । व्यापार के सिलसिले में कोरबा आना हुआ और मां की कृपा से यही बस गए। यहां के लोगों से अपार स्नेह , आत्मीयता, प्रेम और अपनत्व मिल रहा हैं।

श्रीयुत अग्रवाल जी कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में काफी विपन्नताओं का सामना किया। बचपन से ही राजस्थान के करौली की मां भगवती कैलो देवी की आस्था रही हैं । वर्ष 1981 में एक बार देवी मां ने उन्हें गहरी नींद में मंदिर बनवाने को कहा।अपनी जमापूंजी को जोड़कर उन्होंने देवी मां का दिव्य मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर पूजा-अनुष्ठान करने लगे। पूजा-अर्चना करते हुए वर्षों बीत गया मन शांत नहीं हुआ तब वे करौली जाकर देवी मां के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और हाथ में कुछ ऐसा गुण देने को कहा जिसके माध्यम से मनुष्य का भला कर सके। उस समय मंदिर में पुजारी बालकदास थे। कुछ ही दिनों में उनको लकवा मार दिया देखकर ऐसा लग रहा था कि वो अब स्वस्थ नहीं हो सकते। दो-तीन महिनों के बाद जब वे मंदिर गए तब उन्हें पूर्णतः स्वस्थ देखकर दंग रह गए। पता चला कि उनके स्वस्थ होने का कारण स्वयं द्वारा बनाया हुआ जड़ी-बूटियों का सेवन हैं। उन्होंने देवी मां का दिग्दर्शन मानकर पूजा-अनुष्ठान तथा लोगों को जड़ी-बूटियों के माध्यम से ठीक-ठाक करने में लग गए।

खूद के हाथों से बनाएं हुए दवा देते हैं वैद्यराज 
शशिभूषण सोनी ने आगे बताया कि वैद्यराज अग्रवाल जी के पास मैंने रविवार का अधिकांश समय बिताया । उनके पास आने-जाने वाले लोगों का तांता लगा हुआ था। वे बताते हैं कि 75 प्रतिशत दवाईयां लोगों से जुटाई गई जड़ी-बूटियों से स्वयं ही बनाते हैं और इस कार्य के लिए उनके सुपुत्र राजेश, मुकेश, बेटे-बहू और पोता पोती सहायक बनते हैं।शेष 25 प्रतिशत दवा वे हरिद्वार से मंगवाते हैं। आयुर्वेदिक दवाइयों के गुण जानने के लिए उन्होंने प्रयागराज से आयुर्वेद का कोर्स किया तब से दवाईयां देते आ रहे हैं। फिर बार-बार पूछने पर इन दवाईयों को देने के बदले क्या लेते हैं ? उन्होंने कहा शशिभूषण सोनी बाबू मैं इन लोगों से एक पैसा भी नहीं लेता, आप सामने हैं इन लोगों से पूछ लो तसल्ली हो जायेगी । मैंने उनकी मनोदशा को पूर्णतः समझ लिया था। उन्होंने कहा कि मेरा सब-कुछ देवी मां की कृपा से ही हो रहा हैं । भक्त की आस्था को मां ही जानते और समझते हैं ।

कैलो देवी के आशीर्वाद से व्यापार और मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही हैं, मैं जीवनपर्यंत सेवा करता रहूं

आयुर्वेद विशारद वैद्यराज अग्रवाल जी शिक्षा-दीक्षा के साथ आयुर्वेद की उपाधि धारक हैं। इसके साथ ही उन्होंने आरएमपी की उपाधि हासिल की। रोजी-रोटी के सिलसिले में ,27 वर्ष पहले कोरबा आना हुआ। पहले छोटा-सा कपड़े का दुकान था दुकान पर ही फुटकर विक्रय कर छोटी-मोटी दवाइयां देते रहते थे। मां कैलो देवी के आशीर्वाद से दुकान और मरीजों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती गई। आज़ वे इस रोगों की दवाईयां देते हैं – लकवा, गाठियां, साइटिका, बात, शुगर का पाउडर, दमा, मिर्गी, सीकलीन, खांसी-जुकाम, बवासीर, एक्जिमा,खुनी व वादी बवासीर सहित हार्ट ब्लाकेज की निःशुल्क दवा देते हैं।

एक शिष्य के जीवन को सजाने और संवारने में गुरु की भूमिका होती हैं वैसे ही बालकदास की भूमिका मेरे जीवन को बदलने में अविस्मरणीय रही हैं। उन्हीं के आशीर्वाद से मैंने सेवा कार्य का मार्ग चुना और आज अन्यान्न्य बीमारियों के मरीज़ उनके यहां पहुंचते हैं और ईलाज से संतुष्ट होकर पवित्र भाव से वापस लौटते हैं , यही उनके जीवनकाल की सबसे बड़ी पूंजी हैं ।

सेवा कार्य द्वारा विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों ने किया सम्मानित 

दिन-प्रतिदिन अग्रवाल जी की दुकान पर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही हैं और गंभीर मरोजों को देखकर खुश होते हैं कि देवी मां जगदम्बा ने सेवा कार्य के लिए उनके पास भेजा हैं । वे अपनी ओर से थक-हारकर पहुंचे मरीजों को आयुर्वेदिक दवाएं निःशुल्क उपलब्ध करवाते हैं। उनकी इसी सेवा भावना के लिए विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों द्वारा सम्मानित किया जा रहा हैं । दिनांक 13 अक्टूबर,2015 को अग्रवाल सभा कोरबा द्वारा सम्मानित किया गया उन्हें यह सम्मान तात्कालिक विधानसभाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने प्रदान किया । इस अवसर पर तत्कालिक सासंद डॉ बंशी लाल महतो संसदीय सचिव लखनलाल देवांगन, तथा अग्रवाल सभा अध्यक्ष नागरमल अग्रवाल के कर-कमलों द्वारा प्रदान किया गया था। 14 जून को उन्हें रायगढ़ में धन्वंतरि पुरुस्कार से सम्मानित किया गया हैं । इसके तहत शील्ड, प्रशस्ति-पत्र और 11000 रुपए दिया गया था लेकिन अग्रवाल जी ने शील्ड तथा प्रशस्ति-पत्र तो स्वीकार किया लेकिन 11000 रुपए की धनराशि को मानवता की सेवा के लिए अग्रवाल सभा को वापस लौटा दिया ।

भारतीय संस्कृति और धर्म में गहरी आस्था रखने वाले राधेश्याम अग्रवाल जी नम्र व्यक्ति हैं। वह एकदम शालीन और सभ्य पुरुष हैं। सहज और गंभीर विषयों पर उन्होंने हंसकर ज़वाब दिया । अग्रवाल समाज के प्रतिष्ठित लोगों में उनकी गिनती हैं । श्रेष्ठ विचारक, अनुभवी चिकित्सक, जड़ी-बूटियों के जानकार, गुनी और विभिन्न पुस्तकों का गहन अध्ययन करने वाले अग्रवाल जी अपने अनुभवों को साझा करते हैं। शशिभूषण सोनी के बार-बार पूछने पर द्रवित होकर राधेश्याम अग्रवाल जी कहते हैं कि जब उनके पास कुछ नहीं था तब वे लोगों को देते आ रहे हैं और अब जब ईश्वरीय कृपा से सब-कुछ हैं तो किसी भी व्यक्ति से कोई भेंट नहीं लेते हैं। उनके मन में कोई लोभ नहीं हैं बल्कि वे समाज को देते रहना चाहते हैं जीवन !

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