
दुर्गा पूजा
आज से पूरे देश में शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो गया। नवरात्रि, हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो शक्ति की उपासना, साधना और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर देवी दुर्गा के पहले स्वरूप – माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है।
माँ शैलपुत्री: स्वरूप और महत्त्व
माँ शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था, इसीलिए इन्हें “शैलपुत्री” कहा गया। यह माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं और पिछले जन्म में ये माँ सती थीं। त्रिशूल और कमल धारण किए माँ शैलपुत्री वृषभ पर सवार होती हैं और उनके मस्तक पर अर्धचंद्र शोभित रहता है।
माँ शैलपुत्री की पूजा से मन की स्थिरता, शारीरिक ऊर्जा, और धार्मिक शक्ति प्राप्त होती है। यह दिन विशेष रूप से आध्यात्मिक साधना और आत्मचिंतन के लिए अति पावन माना जाता है।
पूजा विधि और आयोजन
देशभर के मंदिरों, घरों और पूजा पंडालों में आज सुबह से ही श्रद्धालुओं ने: कलश स्थापना (घट स्थापना), माँ शैलपुत्री की प्रतिमा पर पुष्पांजलि, दुर्गा सप्तशती पाठ, मंत्र जाप, आरती और भजन-कीर्तन का आयोजन किया। व्रती भक्तों ने उपवास रखकर फलाहार और माँ के भोग के रूप में शुद्ध घी से बनी सामग्री अर्पित की।
भक्ति और आस्था का माहौल
पूरे भारत में आज मंदिरों में जगमगाते दीपक, शंखध्वनि, और “जय माँ दुर्गा” के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया। विशेषकर मैहर, वाराणसी, उज्जैन, कोलकाता और हिमाचल के शक्तिपीठों में भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलेगी।
मंत्र और भोग
मंत्र: “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
भोग: शुद्ध घी, फल, पूड़ी, हलवा, और सफेद पुष्प
नवरात्रि न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह आत्मिक जागरण, अनुशासन, और शक्ति की उपासना का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को जीवन में शांति, संबल और सुख की प्राप्ति होती है।
यह पर्व हमें नारी शक्ति का सम्मान और प्रकृति के साथ संतुलन की प्रेरणा देता है।
जय माता दी