बेहतर जिला बनने की सबसे बड़ी वजह 217 दिनों के अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल, पढ़े उस बदलाव के नायक युवा नेता नरेंद्र सोनी की कहानी
उपचुनाव खैरागढ़ विधानसभा कांग्रेस की जीत का कारण जिला की घोषणा रहा
बेहतर प्रशासन समय श्रम और धन की बचत के लिए बना केसीजी
खैरागढ़ / रामायणकाल में दक्षिणकौशल के नाम से विख्यात यह छत्तीसगढ़ प्रदेश भगवान श्रीरामचन्द्र जी का ननिहाल भी है और वनवासकाल में भगवान राम के पदचिन्हों का गवाह भी.! इसी छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी से 110 किलोमीटर दूर मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में हरियाली का चादर ओढ़े स्थित है खैरागढ़ रियासत! यूं तो यहां के राजवंश की ख्याति समूचे भारतवर्ष में रही और इसी रियासत के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह एवं उनकी धर्मपत्नी रानी पदमावती सिंह की पुत्री राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में स्वयं राजासाहब द्वारा स्थापित इंदिरा कला संगीत विश्विद्यालय सम्पूर्ण विश्व में अपनी तरह का दूसरा और एशिया का एकमात्र कला और संगीत को समर्पित संस्थान है जो आज भी राजासाहब द्वारा प्रदत्त उन्ही के राजमहल में संचालित है और नित नये आयाम गढ़ रहा है. सन 1947 को भारतवर्ष जब आज़ाद हुआ तो सरदार वल्लभभाई पटेल के आग्रह पर इसी खैरागढ़ रियासत राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह नें सर्वप्रथम विलयपत्र पर हस्ताक्षर किये…! तत्पश्चात कालखंड बड़ी तेजी से बीता और दुर्ग में शामिल राजनांदगाँव को अलग जिला बनाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी..तब दो विकल्प थे पहला राजनांदगाँव और दूसरा खैरागढ़ परन्तु प्रसाशनिक अड़चनों के चलते 26 जनवरी 1973 में राजनांदगाँव की जिला घोषित कर दिया गया और खैरागढ़ के जिला बनने की मांग राजासाहब की महत्वकांक्षा मात्र रह गई..समय बीतता गया और खैरागढ़ के जिला निर्माण की मांग भी रह रह कर उठती रही.पर कभी जनांदोलन में नही बदल सकी. इसी खैरागढ़ रियासत में राष्ट्रकवि स्व. पदुमलाल पुन्ना लाल बक्शी जी का भी जन्म हुआ। और राष्ट्रकवि बक्शी जी के निवास स्थान के निकट ही जन्में नरेंद्र का. राष्ट्रकवि बक्शी जी के पड़ोसी होने का ही असर रहा कि बचपन से ही अध्ययन में मेधावी रहे नरेंद आगे चलकर छत्तीसगढ़ 2001 में जब मध्यप्रदेश से पृथक होकर अलग राज्य बना तो इसी खैरागढ़ नगर स्थित रानी रश्मिदेवी महाविद्यालय के प्रथम निर्वाचित छात्रसंघ अध्यक्ष अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से बने जबकि परिस्थियाँ विपरीत थी क्योकि छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद कांग्रेस की सरकार थी..और यहीं से इनके भीतर समाज के प्रति रुझान बढ़ा और समाजसेवा में ये अग्रसर हुए..अनेकों समाजसेवा के कार्य जैसे ग्रामीण शिक्षा के उन्नयन के लिए वन्देमातरम विद्यालय का नींव रखना हो या विविध स्तर पर रक्तदान शिविर का आयोजन,रक्तदाताओं का समूह बनाकर आपातकाल की स्थिति में रक्तप्रदाताओं के नाम की सूची बनाना हो अनेक समाजिक कार्य सफलतापूर्वक किये..तत्कालीन राजा स्व.देवव्रत सिंह जी असामयिक निधन नें समूचे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया और जिले की आस भी टूटती नज़र आने लगी और आमजन के मांग को लेकर आजादी के 75 अमृत महोत्सव मना रहे वही क्षेत्र के कई गाँव सड़कें नहीं है..बिजली सौर उर्जा से चल रही है..स्वास्थ्य सेवाओ का बुरा हल है.. शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है..प्रशासन में बैठे जिम्मेदार अधिकारी आखरी छोर तक दूरियों की वजह से नहीं ध्यान दे पा रहे है ये सब दूरस्थ अंचलों का हल है जहाँ हजारो आदिवासी परिवार रहते है.. नरेंद्र सोनी जी जिलानिर्माण को लेकर पहला दृश्य और दीर्घकालिक आंदोलन की नींव रखी.. जिला निर्माण को लेकर लगातार 217 दिनों तक निरन्तर क्रमिक भूखहड़ताल पर रहे,राजनीति शास्त्र और विधि के छात्र रहे श्री सोनी नें जिला निर्माण को लेकर सभी प्रसाशनिक बारीकियों को समझा और पुरज़ोर प्रयत्न किया इन्होंने ही सर्वप्रथम खैरागढ़ छुईखदान गंडई जिले की परिकल्पना की..इनके सरल व्यक्तित्व कुशल नेतृत्व और सौम्य व्यवहार का ही नतीजा रहा कि इस आंदोलन को हर वर्ग नें खुलकर समर्थन दिया..चूंकि स्वर्गवास के समय राजासाहब खैरागढ़ के विधायक पद पर आसीन थे और उनके कार्यकाल में अभी काफ़ी समय शेष भी था अतः उनके जाने के बाद इस विधानसभा में उपचुनाव आवश्यक हो गया..धीरे धीरे उपचुनाव का समय भी निकट आ गया..दूसरी ओर श्री सोनी जी का जिलानिर्माण को लेकर क्रमिक भूख हड़ताल का जनआंदोलन भी अपने चरम पर था..यही कारण रहा कि पूरे चुनावी समय में जिलानिर्माण ही मुख्यमुद्दा बना रहा और उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी को अपनी जीत के लिए मजबूरन जिलानिर्माण के मुद्दे को ही प्रमुखता से उठाना पड़ा. अपनें आंदोलन से सोनी नें शासन प्रसाशन को इतना मजबूर कर दिया कि उपचुनाव में जीत के लिये जिलानिर्माण के अलावा दूसरा न कोई मुद्दा बचा और न ही कोई विकल्प.
परिणामस्वरूप सत्तापक्ष कांग्रेस पार्टी नें जिला निर्माण के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और अपनी जीत दर्ज की..
परिणामस्वरूप नरेन्द्र सोनी के नेतृत्व में जिलानिर्माण को लेकर किया गया अनिश्चितकालीन क्रमिक भूख हड़ताल का ये संघर्ष सफ़ल हुआ और आज खैरागढ़ रियासत अलग जिला मुख्यालय का दर्जा प्राप्त कर चुका है….ये एक सामान्य व्यक्ति की ही अभूतपूर्व नेतृत्व क्षमता..और निःस्वार्थ समाजसेवा का ही परिणाम है. इस रियासत को जिला का उपहार प्रदान करके सरल और अत्यंत सहज व्यक्तित्व के धनी समाजसेवी व् युवा नेता सोनी चाय में शक्कर की तरह आज आज पुनः समाज में समाहित हो गये हैं.
ना इन्हें किसी पद का मोह है न धन की लालसा : समाज की आवश्यकता,और समस्या पर निरन्तर बारीक नज़र बनाये हुए क्षेत्र के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं…आगे इस क्षेत्र की पिछड़ी जनता को रेल की सुविधा मुहैया करवाना ही इनका एकमात्र उद्देश्य है.पिछले दिनों खैरागढ़ छुईखदान गंडई छत्तीसगढ़ राज्य का 31 वां जिला बन गया, पिछले कई सालों से जिला बनाने की मांग चल रही थी,पहली बार किसी शख्स ने संयुक्त जिला खैरागढ़ छुईखदान गंडई बनाने कि बात कही और व संयुक्त जिला बनाने की मांग को लेकर शांतिपूर्ण एवं चरणबद्ध आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया व आम जनमानस को प्रेरित किया है तो वो है खैरागढ़ निवासी बेहद ही मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए उच्च शिक्षीत नरेंद्र सोनी
2- साधारण परिवार में जन्मे इनकी कहानी बेहद संघर्षों भरी गए पिता स्वर्गीय सीताराम सोनी शासकीय चपरासी थे और मां चंद्रकली सोनीगृहणी बगैर प्रकाश व्यवस्था से, आठवीं तक की पढ़ाई शोर शराबा के साथ हुआ, तो आठवीं के बाद की पढ़ाई उनके पिताजी के रिटायरमेंट के बाद प्रकाश व्यवस्था के साथ आर्थिक तंगी में उनका मानना है कि जन अभियान सत्ता की चाह या कोई पद पाने से परे होते हैं इसलिए वह नैतिक मुद्दे और हाशिए के लोगों की आवाज उठाने में सक्षम है और अगर आप दूसरों को आगे बढ़ाने की सोच रखते हैं, उनकी तरक्की चाहते हैं पहले खुद उन चीजों को सीखें आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। लीक से हटकर कार्य करने की सोच,जिसमें आलोचना होना स्वभाविक है आर्थिक विपन्नता के बावजूद, प्रबल इच्छाशक्ति से ,संसाधनों के अभाव के बावजूद भी उन्होंने हौसला नहीं हारा और तय किया कि सब के उत्थान में शिक्षा ही ऐसी कुंजी है जो सारे प्रकार की समस्या के समाधान कर सकती है और सभी प्रकार के निर्धनता को खत्म कर सकती है। महाविद्यालय के दिनों में सहपाठी जो दूरदराज गांव जंगल क्षेत्र से आते हैं जिनके पास पैसे की कमी के साथ-साथ सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार की भी जबरदस्त समस्या और चुनौती है और अधिकांश क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र है ।यह बात अविभाजित मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य बनने के समय सन 2000 की है खैरागढ़, जहां महाविद्यालय में बीए ,बीकॉम ,बीएससी और राजनीति विज्ञान के अकेले महाविद्यालय था, तब से ही क्षेत्र में सामाजिक बदलाव और जागरूकता के उद्देश्य कार्य करना आरंभ किया उद्देश था कि , मेहनत बेकार नहीं जाती ,कुछ ना कुछ देकर जाती है और हमेशा सोच थी कि प्रशासन उन तक पहुंचे ,जो प्रशासन तक नहीं पहुंच सकते उनकी आवाज बने ,जिनके पास कहने का जरिया नहीं है उनके लिए, बेहतर प्रशासन हो, और उनके समय श्रम और धन की बचत हो ।सेवा कार्य ही राजनीति है ,यही राजनीति सेवा कार्य होकर काजनीति बनती है
जिसे कानून के बारे में जानकारी नहीं है ,जो कहीं ना कहीं किसी रूप से अन्याय ,से पीड़ित हैं उन्हें कानूनी सहायता, देना तथा विधिक सहायता ,उपलब्ध कराना इनका उद्देश होता है आम जनता के अधिकार और उनके कर्तव्य के प्रति जागरूक करने के लिए “पत्रकारिता व जनसंचार” की पढ़ाई की । मानसिक स्वास्थ्य के लिए और मानसिक दुर्बलता को दूर करने के लिए मानवीय व्यवहार को समझ कर अपना कार्य करना या नीति बनाना समाज के लिए बहुत जरूरी है जिसके लिए मानवीय व्यवहार की बारीकी अध्ययन के लिए “मनोविज्ञान” का अध्ययन किया। प्रशासन के लालफीताशाही को रोकने के लिए सामान्य नागरिक का प्रशासन और आम जनता के बीच कड़ी स्थापित करने के लिए “समाजकार्य “में अध्ययन किया। आज के पीढ़ी के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक कार्य क्षेत्र में बगैर कंप्यूटर के कार्य की कल्पना नहीं किया जा सकता कंप्यूटर के प्रति लोगों को जागरूक और लोगों को कौशल विकास के लिए कार्य करने के उद्देश्य “कंप्यूटर” (पीजीडीसीए) की शिक्षा ली महाविद्यालय के दिनों सन 2000 से आज वर्तमान तक लोगों के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए न्याय दिलाने में संघर्षशील है खुद की परेशानियों से सबक लेकर समस्याओं को सही तरीके से सामने लाकर उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं उनकी राजनितिक सुझबुझ के कारण इस आन्दोलन के विशेषता रही की यह बगैर किसी से आर्थिक सहायता लिए चलने वाला आन्दोलन बना.जिसका एक मात्र उद्देश्य लोगो को बेहतर प्रशासन मिले उनके समय- श्रम और धन की बचत हो आम जन व् शासन प्रशासन की दूरियां कम हो.
3- महाविद्यालय के दिनों में सहपाठी जो दूरदराज गांव जंगल क्षेत्र से आते हैं जिनके पास पैसे की कमी के साथ-साथ सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, की भी जबरदस्त समस्या और चुनौती है और अधिकांश क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र है । यह बात अविभाजित मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य बनने के समय सन 2000 की है खैरागढ़, जहां महाविद्यालय में बीए, बीकॉम, बीएससी और राजनीति विज्ञान के अकेले महाविद्यालय था, तब से ही क्षेत्र में सामाजिक बदलाव और जागरूकता के उद्देश्य कार्य करना आरंभ किया उद्देश था कि, मेहनत बेकार नहीं , जाती, कुछ ना कुछ देकर जाती है और हमेशा सोच थी कि प्रशासन उन तक पहुंचे, जो प्रशासन तक नहीं पहुंच सकते उनकी आवाज बने, जिनके पास कहने का जरिया नहीं है उनके लिए बेहतर प्रशासन हो, और उनके समय श्रम और धन की बचत हो । सेवा कार्य ही राजनीति है, यही राजनीति सेवा कार्य होकर काजनीति बनती है, सामाजिक कार्यकर्ता और युवा नेता के रूप में क्षेत्र में इनकी छवि है । अपने आधिकार और वास्तविक हक को प्राप्त करने के लिए तेरा मेरा, उसका जैसी छोटी भावनाओ से उपर उठकर हम सबके साथ हमारा सबका विकास इन्ही भावनाओ के साथ हम होंगे कामयाब वाली भावनाओ को प्रबलता और प्रखरता इस आन्दोलन से मिली है. स्वविवेकी उर्जावान साथियों की उपस्थिति की ताकत सामाजिक बदलाव ला सकती है. और सामाजिक सरोकार में समाज और सरकार के लिए छोटी छोटी भागीरथ प्रयास बड़ी सफलता बन सकती है.जिसे कानून के बारे में जानकारी नहीं है, जो कहीं ना कहीं किसी रूप से अन्याय से पीड़ित हैं उन्हें कानूनी सहायता, देना तथा विधिक सहायता उपलब्ध कराना इनका उद्देश होता है आम जनता के अधिकार और उनके कर्तव्य के प्रति जागरूक करने के लिए “पत्रकारिता व जनसंचार” की पढ़ाई की। स्वास्थ्य में जागरूकता लाने प्रयास के लिए “डी फार्मेसी “कोर्स किया । मानसिक स्वास्थ्य के लिए और मानसिक दुर्बलता को दूर करने के लिए मानवीय व्यवहार को समझ कर अपना कार्य करना या नीति बनाना समाज के लिए बहुत जरूरी है जिसके लिए मानवीय व्यवहार की बारीकी अध्ययन के लिए “मनोविज्ञान” का अध्ययन किया। प्रशासन के लालफीताशाही को रोकने के लिए सामान्य नागरिक का प्रशासन और आम जनता के बीच कड़ी स्थापित करने के लिए “समाजकार्य ” में अध्ययन किया। आज के पीढ़ी के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक कार्य क्षेत्र में बगैर कंप्यूटर के कार्य की कल्पना नहीं किया जा सकता कंप्यूटर के प्रति लोगों को जागरूक और लोगों को कौशल विकास के लिए कार्य करने के उद्देश्य “कंप्यूटर” ( पीजीडीसीए) की शिक्षा ली महाविद्यालय के दिनों सन 2000 से आज वर्तमान तक लोगों के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए न्याय दिलाने में संघर्षशील है खुद की परेशानियों से सबक लेकर समस्याओं को सही तरीके से सामने लाकर उनकी लड़ाई लड़ रहे है।