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CHHATTISGARH : सुबह हो या शाम… इनके जीवन में है बस राम-राम-राम, राममय हुए माहौल में सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा रामनामी मेला

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सक्ती / सुबह का सूरज आज बादलो में कही गुम था रात बारिश हुई थी और भीगी-भीगी मौसम के बीच हजारों लोगों का हुजूम जिस ओर आकर्षित हो रही थीं वह शायद उनकी श्रद्धा और विश्वास ही था…जो इस धरती के ऐसे राम को देखने आए जा रहे थे। जो किसी मंदिर में नही अपितु इनके जीवन में सदैव समाहित है। बेशक यह रामनामी है और न सिर्फ इनका चोला शरीर का हर हिस्सा राम…राम…राम…के अक्षरों से नस-नस में विद्यमान है।

शरीर पर श्वेत परिधानों के साथ मोह, माया, लोभ, काम, क्रोध और व्यसनों को त्याग कर सबको भाई-चारे के साथ बिना किसी भेदभाव के शांतिपूर्ण तरीके से जीवनयापन का संदेश भी देते हैं। छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले सक्ती के जैजैपुर विकासखंड में रामनामी समुदाय का तीन दिवसीय बड़े भजन का मेला नई पीढ़ी और पहली बार देखने वालों के लिए जहाँ कौतूहल का केंद्र बना है, वहीं इसके विषय में पहले से जानने और समझने वालों के लिए यह सम्मान और गौरव से कम नहीं। अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा से राममय हुए माहौल के बीच रामनामी समुदाय का बड़े भजन का यह मेला भी सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा है।IMG 20240122 WA0009 Console Crptechअपने राम के प्रति अगाध, अथाह प्रेम और अटूट आस्था की यह गाथा हकीकत में कही विराजमान है तो वह छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय ही हैं। भगवान राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में रामनामी समुदाय का पादुर्भाव कई उपेक्षाओं, तिरस्कारो और संघर्षों की दास्तान है, जो 160 वर्ष से अधिक समय पहले अपनी आस्था पर पहुँची चोट के साथ इस रूप में जन्मी कि आने वाले काल में इन्हें अपनाने और मानने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। वह दौर भी आया जब रामनामी समुदाय अपनी तपस्या और सादगी को अपनी उपासना के बलबूते साबित करने में सफल हुए।

इनका मानना है कि उनका राम तो हर जगह मौजूद है, वे अपने राम को कही ढूंढते भी नहीं.. न ही अपने शरीर पर राम… राम लिखवाने से परहेज करते हैं। रामनामी समाज के गुलाराम रामनामी बताते हैं कि उनका यह आयोजन सन 1910 से होता आ रहा है। जैजैपुर का आयोजन 115वां वर्ष है। साल में एक बार यह आयोजन बड़े भजन मेला के रूप में निरंतर किया जाता है। उन्होंने बताया कि रामनामी को कोई भी समाज और धर्म के लोग अपना सकते हैं,लेकिन उन्हें सदाचारी, शाकाहारी और नशे आदि से दूर रहते हुए मानवता के प्रति प्रेम को अपनाना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि रामनामी अपने शरीर पर राम…राम लिखवाने के साथ ही कभी सिर पर केश नहीं रखते, महिला हाथों में चूड़ी या गले में माला भी नहीं पहनती। शरीर पर राम ही राम धारण होता है और यह प्राण त्यागने के पश्चात भी मिट्टी में दफन होते तक आत्मसात रहता है।

82 साल के रामनामी तिहारु राम ने बताया कि उनकी पत्नी फिरतीन बाई और उन्होंने चार दशक पहले ही राम को अपने जीवन और शरीर में आत्मसात किया है। एक साल पहले वे अयोध्या भी गए थे, इस बार रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रण आया था। यहाँ से रामनामी गए हैं और खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सभी की कामना है कि जाति-पाति, ऊंच-नीच खत्म हो तथा समाज में भाईचारे के साथ सद्भावना का विकास हो। रामनामी समाज में महिला और पुरूष में कोई भेदभाव नहीं होने की बात कहते हुए तिहारु राम बताते हैं कि वे लोग मूर्तिपूजा नहीं करते, रामायण का पाठ करते हैं और अपने राम का जाप करते हुए मानवता का संदेश देते हैं। लगभग 80 साल के रामभगत, 75 साल की सेतबाई ने भी शरीर पर राम..राम गुदवाया है। वे कहते हैं कि यहीं राम उनकी आस्था है और प्रेरणा भी…। यह अमिट लिखावट उन्हें कभी भी किसी के प्रति दुराचार या गलत आचरण की ओर नहीं ले जाती।

कलश यात्रा के साथ श्वेत ध्वज चढ़ाकर मेले का किया गया शुभारंभ

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ऐतिहासिक और गौरवान्वित करने वाला रामनामी मेला,बड़े भजन का मेला किसी पहचान का मोहताज नहीं है। आज 115वां मेला का शुभारंभ सक्ती जिले के जैजैपुर ब्लॉक मुख्यालय में हुआ। इस दौरान आसपास सहित दूरदराज गांवों से बड़ी संख्या में रामनामी समाज के लोग और ग्रामीण पहुँचे। गाँव के मदन खांडे के निवास से पूजा अर्चना के पश्चात धान से राम..राम लिखकर कलश यात्रा निकाली गई, जो कि गाँव के प्रमुख गलियों से होकर मेला स्थल बरछा में छतदार जैतखाम तक पहुँची। यहाँ ध्वज चढ़ाने के साथ ही भजन-आरती की गई। सिर पर मोरपंख के साथ मुकुट धारण किए रामनामी को अपने आराधना और आराध्य देव राम के भक्ति भावना में लीन होकर चलते हुए देखकर लोगों के मन में राम के प्रति श्रद्धा और विश्वास और भी कायम होता नजर आया।

 खींचे चले आते हैं मेले में और फिर आना चाहते हैं ग्रामीण

IMG 20240122 WA0011 Console Crptechरामनामी मेला हर साल किसी न किसी गाँव में होता आ रहा है। इस मेले में एक बार आने वाले समय मिलते ही दोबारा जरूर आते हैं। अब तक आठ बार रामनामी मेले में आ चुकी वृद्धा कचरा बाई कहती है कि मुझे यहां आकर बहुत ही खुशी की अनुभूति महसूस होती है। कौशल्या चौहान बताती है कि वह तीसरी बार इस मेले में आई है। दिल्ली से आये सरजू राम ने बताया कि वह कई मेले में शामिल हो चुका है। यह मेला सभी समाज को जोड़ने और मानवता को बढ़ावा देने के संदेश को विकसित करता है। मेला समिति के अध्यक्ष केदारनाथ खांडे ने बताया कि दूरदराज से आए ग्रामीण मेला में पूरे तीन दिन तक ठहरते भी हैं, यहाँ लगातार भंडारा भी चलता रहता है। इस दौरान राम…राम..राम की आस्था उन्हें दोबारा आने के लिए उत्सुक भी करती है।

गाँव के ही दंपति द्वारा दान भूमि में बनाया गया है छतदार जैतखामIMG 20240122 WA0014 Console Crptechभगवान राम के लिए अपनी जीवन समर्पित करने वाले रामनामी समुदाय का यह मेला वास्तव में समाज को जोड़ने और मानवता को विकसित करने वाला होता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि गाँव के अनेक लोग जो अन्य समाज के है उन्होंने अपनी कीमती भूमि छतदार जैतखाम के निर्माण के लिए दान की। गांव के पंचराम चंद्रा और श्रीमती लकेश्वरी चंद्रा ने मेला स्थल पर भूमि दान की है वहीं अन्य ग्रामीण भी है,जिन्होंने निःस्वार्थ अपनी कीमती जमीन दान की है।

1910 में ग्राम पिरदा में आयोजित किया गया था पहली बार मेला

रामनामी बड़े भजन का मेला,संत समागम का आयोजन वर्ष 1910 से लगातार आयोजित किया जा रहा है। पौष शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी तक 3 दिवस चलने वाले इस मेले में भजन और 24 घण्टे राम नाम जाप किया जाता है। पैरो में घुँघरू के साथ राम..राम लय में गाते हुए नृत्य करते है और मेले की शोभा को बढ़ाते हुए रामनाम के संदेश को सभी के मन में समाहित करने कामयाब भी होते हैं।

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