
हिन्दू धर्म मे रावण और उसके कुल का पुतला जलाया जाता है, इस पर्व को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। रावण का पुतला जलाना बुराई पर अच्छाई का प्रतीक समझा जाता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण का ही पुतला क्यों जलाते है?
हिंदू धर्म में हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। इस दौरान देशभर में रावण के पुतले का दहन किया जाता है। हिंदू धर्म में दशहरे के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की और अंधकार पर रोशनी की जीत का प्रतीक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ रावण और उसके कुल का पुतला ही क्यों दहन जाता है? कंस, महिषासुर जैसे राक्षसों के पुतले क्यों नहीं जलाए जाते हैं?
अब सवाल यह है कि आखिर सिर्फ रावण और उसके कुल का पुतला ही क्यों जलाया जाता है जबकि और कई राक्षस का देवी-देवताओं द्वारा वध हुआ है।
ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर आज हम आपकों इस तथ्य के पीछे का रोचक तर्क बताते है।
• रावण को लेकर धर्म ग्रंथो में यह वर्णन मिलता है कि रावण एक असुर होकर भी भगवान शिव का परम भक्त था। समस्त वेद, पुराणों और ग्रंथो का ज्ञाता था।
• रावण से बड़ा शिव भक्त न संसार में न तब हुआ था। और ना ही उसके बाद कभी कोई अन्य हुआ। रावण ब्राम्हण कुल से था और सभी नियमों का पालन करता था।
• रावण न सिर्फ बलशाली था बल्कि अस्त्र-शस्त्र का परम जानकार था। रावण का वध करना अन्य राक्षसों के वध करने से कहि अधिक कठिन था।
• रावण का वध इस संकेत को दर्शाता है कि सिर्फ सात्विक इच्छा से की गई पूजा और भक्ति ही फलती है। सात्विक पूजा से ही भगवान का साथ मिलता है।
• अगर कोई भगवान की बहुत पूजा करता है लेकिन बुरे कर्म भी करता है, आसुरी आचरण अपनाता है और दूसरों को कष्ट पहुंचाता है उसका अंत निश्चित है।
• कितना भी पूजा कर ली जाए लेकिन विचार शुद्ध नही है और सत्कर्म से आपका कोई संबंध नहीं है तो भगवान कभी भी आपका साथ नही देंगे।
दरअसल हिन्दू धर्म में रावण को बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। रावण अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञाता और बलशाली तो था ही, साथ ही वह महाज्ञानी भी था। यही कारण है कि रावण के वध के बाद भगवान श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को उसके पास राजनीति की शिक्षा लेने के लिए भेजा था। इतना ज्ञानी होने के बावजूद रावण की सबसे बड़ी कमजोरी उसका अहंकार था। रावण अपने अहंकार के चलते ही गलतियां करता रहा और अपने अंत का कारण स्वयं बना। यही कारण है कि रावण को बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है।
रावण को अपनी ताकत पर बहुत अहंकार था। वह विश्व विजेता बनना चाहता था। इसके लिए उसने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके अमर होने का वरदान मांगा था। लेकिन भगवान ब्रह्मा ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मृत्यु तो तय है। इस पर रावण ने यह वरदान मांगा कि मेरी मृत्यु मनुष्य और वानर के सिवा किसी के हाथों न हो। रावण को अहंकार था कि मेरी शक्ति से तो देवता भी डरते हैं, ऐसे में सामान्य मनुष्य और वानर मेरा क्या बिगाड़ लेंगे। यही कारण है कि भगवान विष्णु ने रावण को मारने के लिए सामान्य मनुष्य के रूप में अवतार लिया। एक सामान्य मानव के रूप में जब भगवान श्री राम ने रावण का वध किया तो इससे यह संदेश गया कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली ही क्यों न हो, अंत में जीत अच्छाई की ही होती है। यही कारण है कि हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण का पुतला दहन किया जाता है।