जांजगीर चाम्पा

CHHATTISGARH NEWS : जल, जंगल और जमीन… पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से मानव जाति के भविष्य पर संकट

Chhattisgarh News

जांजगीर-चांपा / मानव जीवन के लिए जल, जंगल और जमीन तीनों प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता नितांत आवश्यक है, लेकिन अफसोस तीनों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इंसान जिस डाल पर बैठा है उसे ही काट रहा है। प्राकृतिक संसधानों के ज़रूरत से ज़्यादा दोहन की वजह से देश जल, जंगल के संकट से जूझ रहा है, जिले सहित प्रदेश के जंगलों में पेड़ों की कटाई और लगातार बढ़ती जनसंख्या से पर्यावरण असंतुलित होने लगा है। बढ़ती जनसंख्या, नगरीकरण व उद्योगों के कारण उपजाऊ भूमि की कमी होती जा रही है, वहीं कारखानों व वाहनों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ ने पर्यावरण को पूरी तरह से प्रदूषित कर दिया है।

बता दे, छत्तीसगढ़ एक वन्य और खनिज संसाधनों से संपन्न राज्य है, पूरे भारत के अन्य राज्यों में जहां कोयलों और स्वच्छ पेय जल की मारा-मारी चल रही है वहीं छत्तीसगढ़ अपनी वन्य और खनिज सम्पदा में निपुण है |
परंतु पिछले एक दशक से इस राज्य से निरंतर कोयलों की बिक्री के चलते यहाँ का जल, जंगल, जमीन सब नष्ट होता जा रहा है।
जिसमें से आज सबसे ज्यादा विनाशकारी स्थिति में है सरगुजा संभाग का हसदेव वन क्षेत्र जो छत्तीसगढ़ के 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसे छत्तीसगढ़ का फेफड़ा माना जाता है, जिसकी निरंतर अंधाधुंध कटाई की जा रही है।

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कटाई का कारण-

पर्यावरण ऐक्टिविस्ट काजल कसेर ने बताया कि इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कोयले के भंडारण हैं जिनके खनन और विक्रय से सरकार और बड़ी प्राइवेट कंपनियों की आय हो रही है। स्थानीय जन स्त्रोतों के अनुसार विगत 13 सालों में 5 लाख से ज्यादा पेड़ काट कर क्षेत्र को खोखला बंजर बना दिया गया और अभी भी प्रक्रिया निरंतर चलने की वजह से यह वन नष्ट होने की स्थिति पर है। जिससे छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा से लेकर पूरे सरगुजा के बीच आने वाले सभी जिले मुख्य रूप से प्रभावित होंगे |

कटाई और खनन से होने वाले नुकसान-

सरकारी रिपोर्ट से परे 10 लाख से भी ज्यादा पेड़ कटने की कगार पर हैं।
कई हजार जंगली जानवर बेघर हो जायेंगे जिससे भारी मात्रा में विविधता का विनाश होगा।
•10,000 से ज्यादा आदिवासी बेघर होंगे।
• छत्तीसगढ़ के उत्तरी, उत्तरी-पूर्व तथा पूर्वी क्षेत्र में नदियों तथा अन्य जल संसाधनों का कैचमेंट एरिया नष्ट होने की कगार पर हैं।
• हजारों किसानो को कृषि के लिए सिंचाई संकट होगी
• तापमान वृद्धि, कार्बन की मात्रा में अति वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, वर्षा का चक्र प्रभावित होंगे।
• जमीन के अंदर जल स्तर की कमी बढ़ जायेगी।
• आम जनता को पीने की पानी की समस्या का सामना करना पड़ेगा।
• खनन गतिविधियों के कारण जमीन के अंदर पानी की गुणवत्ता प्रभावित होगी, जिससे लिवर, किडनी आदि की समस्या और अधिक बढ़ जाएगी।

जांजगीर-चांपा में प्रभाव ?
▪︎ हसदेव नदी का बहाव इस जिले से होकर जाता है जिससे कई हजार गाँव सिंचित होते हैं, हसदेव वन के कटने से इस नदी का कैचमेंट एरिया खत्म होगा जिससे इससे जुड़े एनीकट, नहरों, जल संसाधनों में पानी नहीं पहुँच पायेगा और कृषि प्रभावित होगी।
▪︎ सूखापन और जमीन के भीतर पानी के घटने से आम जनता को पानी की कमी होगी।
▪︎मृदा प्रदूषण बढ़ने के कारण पानी में अनचाही लवण की मात्रा बढ़ेगी जो शरीर को हानि पहुंचायेगा।
▪︎ जांजगीर-चांपा सबसे कम वन घनत्व क्षेत्र में आने के कारण राज्य का सबसे गर्म जिला है, इस वन के कटने से यहाँ का तापमान और बढ़ जायेगा।

इन सभी नुकसानो को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह केवल राजस्व और विकास के लिए कीमती जंगलों को काटकर कोयलों की सप्लाई न करे। जनता बड़ी उम्मीद से अपने सरकार का चुनाव करती है, इसलिए सरकार को भी संवेदनशील होकर वर्तमान और भविष्य दोनों समझते हुए सतत विकास के अन्य तरीकों पर काम करने की जरूरत है जो सभी के हित में हो काजल कसेर द्वारा इस पूरे महीने हसदेव बचाव जागृति अभियान चलाया जा रहा है। साथ ही राज्य के अलग-अलग जगह में जाकर हज़ारों पामप्लेट बाँटकर, स्कूल कॉलेज अन्य पब्लिक प्लेटफॉर्म में जाकर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा रहा है और अधिक से अधिक लोगों को इन वनों का महत्व समझाया जा रहा है|

जनहित में विनीत
काजल कसेर,पर्यावरण ऐक्टिविस्ट
परिलता फांउडेशन जांजगीर-चांपा

 

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