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जानिए भगवान शिव को क्यों प्रिय है श्रावण महीना, किस तरह की पूजा से होते है शिव जी प्रसन्न

हर हर महादेव शिव शम्भू

सावन का महीना जिसमें भगवान शंकर की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यूं तो भगवान शंकर की पूजा के लिए सोमवार का दिन पुराणों में निर्धारित किया गया है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं में भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन “महाशिवरात्रि” उसके बाद सावन के महीने में आनेवाला प्रत्येक सोमवार का महत्व है। पर सावन के महीने की तो विशेष मान्यता है। आइए बताते हैं क्यों और क्या है इसके पीछे की कहानी और मान्यताएं

ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी (सावन के प्रारंभ) से पहले सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के लिए निकल जाते हैं और अपना सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द को समझते है एवं उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, इसलिए सावन का महीना खास होता है।

श्रावण अथवा सावन हिंदु पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवा महीना ईस्वी कलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना या ‘पावस ऋतु’ भी कहा जाता है क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें ‘हरियाली तीज, रक्षाबन्धन, ‘नागपंचमी’ आदि प्रमुख हैं। श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारियली पूर्णिमा व ‘अवनी अवित्तम’, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षाबंधन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है।

त्यौहारों की विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है। श्रावण यानी सावन माह में भगवान शिव की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार सावन का सोमवार कहे जाते हैं। जिनमें स्त्रियाँ पुरूष तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं।

श्रावण मास का आध्यात्मिक महत्व  जानिए भगवान शिव को क्यों प्रिय है यह महीना, किस तरह की पूजा से क्या लाभ मिलते हैं

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हरषे हेतु हेरि हर ही को।

किय भूषन तिय भूषन ती को।।

नाम प्रभाउ जान सिव नीको।

कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

दूसरी मान्यता के अनुसार समुद्र मन्थन के समय समुद्र से निकले हलाहल विष को भगवान भोलेनाथ अपने गले में धारण किया, जिससे उनके गले में हो रही जलन को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया. इससे उनको उस हलाहल विष के प्रभाव से शांति मिली और वह प्रसन्न हुए. तब से भगवान शिव को जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है।

श्रावण मास में सोमवार व्रत या अन्य व्रत शुरू किया जा सकता है. इस मास में जो व्यक्ति सोमवार को शिव जी को विल्वपत्र एवं दूध-दही, घी, शहद, गन्ने का रस इत्यादि से शिव जी का अभिषेक करता है, शिव जी उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

भगवान शिव के सभी रूपों अवतारों आदि का वर्णन करने वाले ग्रंथ महापुराण में भी शिव जी पर जल चढाने का उल्लेख किया गया हैं। शिवपुराण में बताया गया है की भगवान शिव स्वयं जल हैं, इसलिए किसी भी भक्त के द्वारा उन्हें जल चढ़ाकर उनकी आराधना करना सर्वोत्तम फल प्रदान करता हैं।

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इसके अलावा सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने के पीछे एक कारण यह भी बताया जाता हैं की महादेव के मस्तक पर मां गंगा ओर चंद्रमा विराजमान हैं और दोनों का ही संबंध जल से हैं। यहीं कारण है की पूरे मन से भगवान शिव पर जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

यह माह समस्त देश में हरियाली और खुशहाली भी लाता हैं। भगवान भोले शंकर को समर्पित इस महीने में रुद्राक्ष धारण करना भी बहुत शुभ माना जाता हैं। सावन माह में श्रद्धापूर्वक किए गए भगवान शिव की पूजा-अर्चना से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। राजाभैया न्यूज़ डॉट कॉम की ओर से इस पावन महीने की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

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